Book Title: Dharmratna Prakaran
Author(s): Manikyamuni
Publisher: Dharsi Gulabchand Sanghani

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Page 65
________________ ( ६१ ) नो आयु की मालूम होवे तो श्रावक संलेखना करे, और आहार छोड़े और निराकांक्षी हो मुक्ति में दृढ भावना रखें आज के समय में आयु की मालुम न होने से यह परिपाटी नहीं है तो भी एक एक दिन वा एक एक कलाक का पच्चखाण कर सक्ते हैं किन्तु रोगी के पास बैठने वाले आदमी को हर समय उपयोग रखना चाहिये । श्रावक के योग्य तपश्चर्या । बाहय के प्रकारका तप है १ उपवास, २ उपोदरी, ३ वृत्तिसंक्षेप, ४' रस व्याग, ५ काय क्लेश ६ संलीनता, अर्थात् बिल्कुल न खाना वा दिन में सिर्फ फासु पानी पीना आंबील वा एकाशना करना कम खाना भिन्न भिन्न वस्तुऐं कम खानी, दूध दही वगैरह न खाना काया का दुःख सहन करना, शरीर स्थिर रखना । अभ्यं तर तप । पाप होगयाडो उसका गुरु पास प्रयाश्चित लेना, बडों का विनय करना, मारों की सेवा और गुणवानों की भक्ति करना पढना पढाना फिर स्मरण करना धर्म कथा कहना ध्यान करना काउसग्ग करना । उसके बारे में दो गाथा याद करनी । असा मुणोअरिया बित्तिसंखेवणं रसच्चाओ कायकिलेसो संलीय को तवोहोर ( १ ) पायच्छितं विणओ वेद्याबच्चं तहेव सज्झाओ उझा उसग्गोविच भिंतर तवो होइ २ । ariचार का वर्णन | जितनी धर्म क्रिया करनी उसमें प्रमाद छोडना और विधि अनुसार बथा क्रि करना । श्रावक के १२ कि १२४ अतिचार हैंसो हिंदी भाषा में नीचे लिखे हैं ।

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