Book Title: Dharmratna Prakaran
Author(s): Manikyamuni
Publisher: Dharsi Gulabchand Sanghani

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Page 64
________________ (६०) श्रावक का दशवां व्रत देशावकाशिक । देशाकाशिक an ar त का ही संबंधी है. पाप व्योपार छोडने को जो दिशि परिमाण जीवित पर्यंत के लिये किया है उसे एक रात बा दिन रात में संकोच कर बैठ उस समय धर्म ध्यान करना किंतु ध्यान यह रखना कि आप दूसरों को भी उस परिमाण से बहार न भेजे और आप साधु की तरह निरवद्य धर्म व्योपार में रहे पढ़े गुणे । श्रावक का ११ वा व्रत पोषध । ( पौष की विधि अलग छप चुकी है वो देखो । ) पोष व्रत से चारित्र का अभ्यास, धर्म की पुष्टि और समय का सदुपयोग मुक्ति के लिये होता है साधु की तरह एक रात, दिनका पच्चखाख होता है देशा व काशिक से उसमें अधिक यह है कि पोषध में उपवास बा वावील वगैरह तप भी करना पडता है क्रिया भी करनी पडती और है दश सामायिक करके भी देशा व काशिक अत करने की परिपाटी है पीछे घर भी जा सक्ता है. और पोषष में तो वहां ही बैठना पड़ता है. दिन में स्थंडिल जाना होतो साधु की तरह बहार जा सके। मंदिर में भी जा सके किंतु द्रव्य पूजा न कर सके यह पोषध पर्व तिथि में होता है । श्रावक का १२ अतिथि संविभाग व्रत है । यह व्रत पौषध के दूसरे दिन एकाशना पका पच्चखाण करके साधु वा साध्वी को आहार देकर जो साधु चीज लेवे वो ही उस दिन एका शना में वापरे जो साधु साध्वी न हो तो जीवित पर्यंत का ब्रह्मचर्य जिसने लिया हो उसे जिमा कर आप खावे वा मंदिर में नैवेद्य चढा कर भोजन करे । श्रावक के १२ वां व्रत समाप्त | ( संलेखना )

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