Book Title: Dharmratna Prakaran
Author(s): Manikyamuni
Publisher: Dharsi Gulabchand Sanghani

View full book text
Previous | Next

Page 46
________________ (४२) साथ. साधुः धर्म के लक्षण भी बताये हैं किजो साधु होने वाला हो उसके मनमें निरंतर यह ख़्याल रहे कि मनुष्य जन्म जैन धर्म, धर्म पर श्रद्धा और धर्ममें शक्ति (वीर्य) का उपयोग करना, के चारबातें बहुत दुर्लभ हैं, उन चारों ही प्राप्त होने पर भी जो मैं प्रमाद करूंगा तो फिर इस दुनियां में अनेक जन्म मर्ण करने पर भी चारों बात एक साथ मिलना मुश्किल हो जावेगी इस लिये इंद्रियों के विषयों की सुंदरता बदलने में देर नहीं लगेगी और शरीर में अब शक्ति बुढापा आ जाने पर धर्म पालना मुश्किल होगा इंद्र भी स्थिर न रहे तो मनुष्य आयु का क्या भरोसा है ? हीरा को छोड कांच के टुकडे मे कौन बुद्धिमान पुरुष राचेगा ! ऐसी वैराग्य भावना से बारंबार गुरुके चरणों में शिर झुकाकर वोलता है हे गुरो ! हे तारक ? हे कृपा सिंधो ! भव भयसे डरा हुआ यह रंक अनाथ को चारित्र धर्म की शरण देकर जन्म जरा मरण रोगादि के भयों से बचाओ हे प्रभो ! सच्चे माता- पिता नरेन्द्र रक्षक, पालक. पोपक तारक के सभी गुण आप में विद्यमान हैं । आप संसार दुःख सागर से मेरा उद्धार करो ? हे प्रभो ? चिंता मणि रत्न कल्प वृक्ष काम धेनु काम कुंभ जैसे चमत्कारी पदार्थों से भी मोक्ष नहीं मिलता, न जन्म मरण रोग के दुःख मिटते किंतु एक ही दुनियां में सब रोंगों के भयों का और पीडाओं का मूल यह मेरा शरीर है जिसके भरोसे मैं आज तक बैठा रहा हूं उसीका प्रथम मोह छोड वीत राग भाषित तत्व ज्ञान संपादन कर उसी उदारिक शरीर के जरिये सब कर्म बंधों तोडने का प्रयास करूंगा इस लिये हे. नाथ ! जहां तक जरा नाम की जम दूती आकर मेरे वाल धोले न बनावे, शरीर की इंद्रियों की शक्ति की क्षीणता न करे वहां तक मुझे आपका साधु भेष शीघ्र दो ! अहाहा ! वो क्षण कब आवेगी कि मैं जीवों को अभय दान देने वाला,सब जीवों पर मैत्री भाव रख ने वाला और मुझे दुख देने वाले जंतुओं पर भी सम भाव रखने वाला प्रात्म हित चिंतक लोह सुवर्ण में चंदन वांसी पर सम दृष्टि वाला राग देष छोड बीत राग दशा में सकाम निर्जरा करने वाला होऊंगा ! इत्यादि कोमल भावना से आंख में आद्रता प्रकट करने वाला, पुनः पुनः चारित्र की प्रार्थना करने

Loading...

Page Navigation
1 ... 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78