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कर साध्वी श्री शील की रक्षा की तो ग्रहस्थों को कोमल भाव रखने पर भी दुष्टों को दंड देना पड़ता है इस धर्म को व्यवहार धर्म कहते हैं और जो शरीर की भी परवाह न करे ऐसे निस्पृही साधुओं को योगी कहते हैं बैं सिर्फ कर्मों को ही शत्रु मानते हैं उनको व्यवहार धर्म नहीं होने से वे निश्चय धर्म वाले है उनको शिष्प परिवार भी नहीं होता न वे उपदेश देवे न वे सुने न शेर से डरे न चंदन बिछू के दंश में भेद माने उनको छोड़ बाकी सब को अपना यथोचित व्यवहार धर्म मानना चाहिये जिससे जैन राजा राज्य कर सक्ता है और साधुओं का धर्मात्माओं का रक्षण कर उनके धर्म का भा. गी होता है जिससे दुष्टों के दंड में जो पाप लगता है वो दूर हो जाता है किंतु उसे भी अपने प्रमाद की आलोचना करनी पडती है अनेक राजा पूर्व में हो गये हैं परंतु कुमार पाल को अधिक वर्ष नहीं हुए हैं उसका हिंदी च रित्र अवश्य पढना चाहिये.
जैसे एक डाक्टर रोगीके हितार्थ उसका पैर में घावकरे उसे दुःख देवे तो भी वोगुनह गार नहीं हो सकता ऐसे राजाओंका भी अधिकार है किन्तु डाक्टरको सांजवा प्रभातमें अपने दरदीओंका विचार करना पडता है कि मेरे प्रमाद से वा कम ज्ञानसे उसे अधिक दुःख तो नहीं दिया वा सोचकर उसका उपाय लेना ऐसेही राजा को भी प्रभात और शाम को अपने कर्त्तव्यों का ख़्याल कर जो भूल होगई हो तो उसकी क्षमा लेना चाहिये.
इस लिये चाहे राजा हो, या रंक हो, पुरुष हो वा स्त्री हो ग्रहस्थ हो वा साधु हो उसे निरंतर प्रति क्रमण करना चाहिये प्रति क्रमण का अर्थ यह है कि अपने कर्त्तव्यों में जो भूल हो गई हो उसे याद कर उसका पश्चत्ताप कर दंड लेना और उसी से राजा भी अपने गुरु रखते थे कुमार पाल और गुरु हेम चन्द्रका चरित्र वांचने से मालुम होगा किस तरह उसे गुरु महाराज ने पाप से बचाया है।
राजा सदाचारी साधु अनाथ रंक का रक्षक और दुष्टों का दंडक होता है वो राजा धर्म - राजा कहलाता है जैसे युधिष्ठिर और राम है और जो राजा आप दुष्टता करे बिना कारण लड़ाई करे वो दुर्योधन का प्रत्यक्ष दृष्टांत है.