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( ५१ ) |
सापेक्ष ||
निरपराधी जीव भी जरूर पड़े तो मारना पड़े जैसे बच्चे के अंग में वा बैल को कीडे पडे हो तो दवा लगाने से वो मर जावे अथवा वाहन घोड़ा आदमी वगैरह को लड़ाई में ले जाना पड़े तो बे मरते हैं तो वे मरते हैं इस लिये उसकी दया न पली २ || हिस्से रहें ।
आरंभ |
खेती करने में बगीचा घर बनाने में बिना इच्छा भी कितने ही जीव मनुष्य के हाथ से मरे इस लिये सिर्फ १ | हिस्सा की गृहस्थी को दया है ॥ जिससे ऐसी प्रतिज्ञा कर सके कि त्रस जीव जो निरपराधी हो तो बिना कारण संकल्प करके न मारुं ।
श्रावक का दूसरा व्रत झूठ न बोलना ।
बर वा कन्या के झूठे दोष वा झूठे गुण बताकर किसी का विवाह बिमाड़ना वाफसा देना ऐसा ही पशु वैल वगैरह में झूठ बोलना, अथवा जमीन की विक्री में झूठ बोलना, किसी की थांपल ले झूठ बोलना ( ५ ) टी साक्षी पूरनी ये पांच बड़े झूठ अवश्य छांडने, सिवाय अप्रिय सत्य भी खास कारण विना न बोले, मार्मिक बचन न बोले ।
( ३ ) चोरी न करना ।
मालिक की विना रजा चीज लेनी, उसे चोरी कहते हैं दमड़ी से लेकर रूपया वा रत्न तक हो तो भी वो विना आज्ञा न लेनी, यदि रास्ता में चीज मिले तो भी उसे नहीं लेनी वो तीसरा व्रत है किंतु चोरों के साथ सोबत रख उसे सहाय देने तो भी चोरी का दोष लगता है राज्य विरुद्ध कृत्य भी नहीं करना अच्छी बुरी नई पुरानी चीज नहीं मिलानी. कूडे वोल माप भी नहीं रखना श्रावक को नीति से व्यवहार रखना चाहिये ।