Book Title: Dharmratna Prakaran
Author(s): Manikyamuni
Publisher: Dharsi Gulabchand Sanghani

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Page 59
________________ (५५) श्रावक के खाने योग्य, है, घी, तेल, दूध, दही, गुड खांड अथवा मीठा पक्वान्न और कडाई में भरे घी में तला जाय वह । ४ उपानड्-जूता, बूट, स्लीपर, मोजा आदि ( जो पांव में पहने जाय )। ५ तंबोल-पान, सुपारी, इलायची, लोंग, पान का मसाला आदि । ६ *वत्थ ( वस्त्र ) पगड़ी, टोपी, शाफा अंगरखा, चुगा, कुरता, धोती, पायजामा, दुपट्टा, चद्दर अंगोछा, रूमाल आदि मरदाना और जनाना कपड़ा (जो ओढने पहरने में आवे )। ७ कुसुमेसु-फूल, फूलकी चीज जैसे सिज़्या, पंखा, सहरा, तुर्रा, हार, गजरा अतर (जो चीज मुंघने में आवे )। ८ वाहन ( सवारी )-गाड़ी, फेरीन, सिगराम, हाथी, घोडा, रथ, पाखखा, डोली, मोटर, साईकल, रेल, दाम्वे नाव जहाज, स्टीमर, बलून आदि याने बरता, फिरता, चरता और उडता। ६ शयन-खुरशी, टेबल पट्टा, पलंग, गादी, तकिया, विछोना, तखत, मेज, सुखासन आदि ( सोने वा वैठने की चीजें )। १० विलेपन-तेल, केसर, चंदनं, तिलक सुरमा, काजल, उवटना, हजामत, बुरश, कंगा, काच देखना दवाई आदि (जो चीज शरीर में लगाई जावे । ११ वंभ ( ब्रह्मचर्य ) स्त्री, पुरुष ने, सुइ डोरे के न्याय से तथा बाह्य बिनोद की संख्या कर लेनी श्रावक परदारा त्याग और स्वदारों से ही संताप रखें, उसका भी प्रमाण कर इसी प्रकार स्त्रीओं को भी समझना चाहिये १२ दिसि (१० दिशा)-शरीर से इतने कोस ( लंबा, चोडा, ऊंचे नीचे) जाना भाना, चिठी तार इतने कोस भेजना, माल और आदमी, इतने कोस भेजना, तथा मंगाना । १३ न्हाण ( स्नान )-शरीर में मोटा स्नान इतनी वेर करना (छोटास्नान) हाथ पैर इतनी बेर धोना। १४ भत्तेसु-*अशन, पान, खादिम, स्वादिम ये चारों आहारमें से खाने में जितनी चीज आने सबका कुल बजन इतना ।

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