________________
(५२)
(४) स्वदारा संतोष मैथुन त्याग वृत्ति । __अपनी स्त्री छोड सर्व स्त्रियों का संग न करना चाहे कन्या रंडी, विधवा हो तो भी जहां तक नैनिक रीति से स्थादी म हो वहां तक संबंध करना न चाहिये अपनी स्त्री भी छोटी वा गर्भ के चिन्ह वाली, बीमार वा पुरुष स्वयं बीमार हो तो संग न करे, पर्व तिथि को अपनी स्त्री में भी ब्रह्मचर्य पाले ।
(५) परिग्रह परिमाण व्रत । घर का निर्वाह अच्छी तरह इज्जत पूर्वक चले उससे अधिक की तृष्णा न करे किंतु पूर्व के पुण्य से यदि आ जावे तो दान में लगा देवे इतना संतोष न रहे तो नियम करे कि इतने से ज्यादह हो तो व्योपार बंद करूं वा धर्म में लगा दं अथवा रोज की कमाई से इतना हिस्सा धर्म में लगा हूं और इन नव चीज का परिणाम करना । . (१) धन, (२) धान, (३) जमीन, (४) मकान, ( ५ ) यांदी, (६) सुवर्ण (७) और सब धातु, उसे कुपद की संज्ञा है, (८) नोकर (6) पशु बैल वगैरह.
· श्रावक का छठा व्रत दिशि परिमाण - उत्तर दक्षिण पूर्व पश्चिम उंचे और नीचे इन ६ दिशा और चार कोण मिल कर १० होते हैं. उन दिशाओं में घर व्योपारार्थ जाने का नियम करना
और श्रावक को वर्षा रुतु में इतनी जगह में भी विना कारण न जाना. इस से पूर्व के पांच व्रतो को गुण होता है. अर्थात् हिंसा वगेरे मिट जाती है. इस लिये जो नियम लेवे वो नोध कर लेवे कि भूल से भी अधिक न जावे.
श्रावक का सातवां व्रत भोगोपभोग विरमण व्रत २२ अभक्ष्य का त्याग भोजन भोग और व्योपार का पारमाण करना ३२ अनंत काय छोड़ना, और सचित वस्तु का पारिमाण करना, रोज १४ नियम पारना, पंदरह का दाम छोड़ना वा का करना,