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(१) दो इंद्रीवाले शरीर और मुंह वाले शख, पेट के क्रमी (जोख ) (२) तीन इंद्री, शरीर मुंह, नाक बाले, कीड़ी चेटे, अनाज के कीड़ों ( ३ ) चौइंद्री , , ,, और आंख वाले डांस मच्छर पतंग वगैरह (४) पंचेंद्री
, , , और कानवाले मनुष्य लिये च ( पशु पक्षी ) देवता नारकी जीव है।
उन सब को बचाना अपना कर्तव्य है तो भी राज्याधीश कुनबा के अधिकारी वा ग्रहस्थी को स्वरक्षा के लिये दूसरे जीव को शिक्षा करनी पड़े तो भी जहां तक बने वहां तक उसे निध्वंस ( दुष्ट ) परिणाम से न मारे यदि राजा जो प्रजा के रक्षा के लिये दुष्टों को दंड न देवे तो अत्याचार और बदमाशों का जोर बढ जाये तो धर्म का नाश हो जाये तो भीतर से उसके दयालु होने पर भी उस के कृत्य से धर्म का नाश हो जाने से सजा महान पापी हो जावे इस लिये प्रजा के रक्षणार्थ उसे बदमाशों को दंड देना ही चाहिये किन्तु शत्र शरण में आने बाद उसके पूर्वक वैर को याद कर उसे दंड नही देना चाहिये.
यहां पर इतना लिखना आवश्यक है कि जैन धर्म से प्रजा निर्माल्य होती है अथवा जैन धर्म का अधिक प्रचार से प्रजा की अवनति होगी ऐसा विचार कितनेक अन्य बंधुओंका है अथवा कितनेक जैनी भी अज्ञान दशा में, ऐसा समझते हैं कि कीडी की दया पालने वाला शत्रु पर कैसे हाथ उठा सक्ता है उनको यहां पर सूचना है कि सर्व जीवों पर क्षमा करने वाले साधु भी दुष्ट राजा को समझाने पर भी न समझे तो योग्य कारण मिलने पर दंड' देने का मोका आ जाये तो उसे साधु दंड देते हैं जैसे कि * कालकाचार्य की' भगिनी जो साध्वी थी उसे गर्दभिल्ल राजाने अपने महल में दुराचारार्थ रख ली थी उसको समझाने पर भी न मानने से कालकाचार्य ने उसे राज्य पर से दूर करा
*काल का चार्य की कथा राजेन्द्र अभिघान कोश प्रथम भाग ५८३ प्रष्ट में देखो-कोउ गह भिल्लो, कोवा कालग जो कम्मि काल सालितो भएणति उज्जेरणी णाम णयरी, तत्थय गह भिलो णाम राया तत्थः कालगजाणम आयरिया. जोतिस णिमित बलिया इत्यादि -नि-चू-१० देशा.