Book Title: Dharmratna Prakaran
Author(s): Manikyamuni
Publisher: Dharsi Gulabchand Sanghani

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Page 49
________________ (४५) भाव श्रावकके और लक्षण । ब्रतकी मन में अभिलाषा रखे, सदाचारी होवे, गुणवान् होवे, निष्कपटी व्यापार करने वाला हो, गुरु भक्त हो, प्रवचन (शास्त्र ) श्रवण में कुशल हो ये भाव श्रावक के लक्षण हैं। ... प्रथम गुरु की बात सुने, उसे समझे यथा शक्ति लेबे, उसे पाले, जो गुरुका विनय बहुमान कर सुने तो उसे अधिक ज्ञान हो सका है जिससे श्रावक व्रत के वीभाग.( भांगे) समजाते हैं। श्रानक व्रत के भांगे। मन बचन काया इन तीनों को जोग कहते हैं, न करूं, न करावं वन अनुमोदुं इन तीनों को करण कहते हैं। ... जैसे कोई आदमी गुरु के पास धर्म समज कर नियम करे कि मैं मन से जीव को न मारुं . (१) (अर्थात् मारने की मन में अभिलाषा न करूं.. (२) बचन से (अर्थात् बचन से मारूं ऐसा शब्द न बोले... (३) काया से (अर्थात् हाथ वा शस्त्र से जीव के प्राण न लङ, . इस तरह इ मन वचन काया से न मरावं. इस तरह उ मन बचन काया से मारने वाले को भला न जानु. '... इस तरह कोई मन बचन का भी लेवे पचन काया का भी लेवे अथवा एक काया का भी नियम लेवे। अथवा - करण - जोग उत्तर गुण का भंगा (१) ·२- ३.- सातवां होता है। . (२) २-- २- और अविरित का आठवां होता है । (३) २- १- और प्रत्येक के ६,६, मंगे होते हैं।

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