Book Title: Dharmratna Prakaran
Author(s): Manikyamuni
Publisher: Dharsi Gulabchand Sanghani

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Page 50
________________ ( ५ . ) ( ६ ). १ १ (४६) २--. १- २१ भंग इस प्रकार हैं । तीन जोग तीन करण से नव भंगे होवे. दो करण तीन जोग से ६ मांगे होवे. एक करण तीन जोग से छः भांगे होवे. इत्यादि अनेक भांगे होते हैं सिवाय सूक्ष्म बादर, त्रस स्थावर, संकल्प, आरंभ, सापराधी, निरपराधी के भेद भी समझने चाहियें । जीवों का किंचित् स्वरूप -- : जीव के दो भेद. संसारी और मुक्ति के संसारी के दो भेद त्रस स्थावर स्थावर के दो भेद हैं ( १ ) सूक्ष्म ( २ ) बादर, इन दोनों में पांच भेद हैं (१) पृथ्वी सूक्ष्म और बादर, (२) पानी सुक्ष्म और बादर (३) अग्नि सुक्ष्म और बादर ( ४ ) वायु सुक्ष्म और बादर ( ५ ) बनस्पति सुक्ष्म और बादर. किंतु वनस्पति में और भी दो भेद हैं जैसे कि ( १ ) प्रत्येक वनस्पति काय जिसमें गिन्ती के जीव हो, (३) साधारण वनस्पति काय जिसमें एक शरीर में अनंत जीव हो-- उनका विशेष स्वरूप " जीब विचार " किताब से ये सब उपयोग में आते हैं किंतु सुदन हाथ में न आने से बादर का ही उपयोग होता है । और जीवों का स्वरूप समज ग्रहस्थ उसे बिना कारण उपयोग में नहीं लेते जैसे कि पेड के एक पत्ते से काम चलता हो तो दो नहीं तोडना, एक तोडे और उपयोग में ले तो वो अर्थ दंड है और दूसरा विना कारण तोड फेंक देवे तो अनर्थ दंड होवे गृहस्थ को अनर्थ दंड अवश्य छोड़ना चाहिये. कार्य का स्वरूप ॥ काय उसे कहते हैं कि जिनका शरीर मुंह हीलता दीखे और भय आने पर दूर भागे जिसका त्रास अपने देखने में आवे और अपने हृदय में कोमल भाव होवें कि उसे दुःख नहीं देना उसे सकाय कहते हैं ।

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