Book Title: Dharmratna Prakaran
Author(s): Manikyamuni
Publisher: Dharsi Gulabchand Sanghani

View full book text
Previous | Next

Page 45
________________ (४१) - छै मास तक कार्य किया बाद राजा देखनेको आया बिमलके कियेहुए चित्रको प्रथम देखकर राजा प्रसन्न हुआ पीछे प्रभास के खंड में गया वहां पर कुछ भी चित्र न देखा तब राजा ने पूछा आपने इतने दिन क्या किया ! बो बोला हे नरेन्द्र मैंने प्रथम छै मास तक चित्र के लिये जमीन बैपार की है आप कृपा कर उसके पास जाकर देखो भींत में आप स्वयं अपना रूप बिना चितरे भी देखोगे. राजा ने वहां समीप जाकर देखा तो अपना प्रति बिंब अच्छी तरह पडा देख आश्चर्य होगया क्योंकि राजा को संपूर्ण आभूषण वस्त्र के साथ संपूर्ण शरीर जैसे आयना में दीखता था वैसाही इस भीत में दीखता था चितारे की ऐसी सफाई देख बिना चित्र भी राजाने प्रसन्नता प्रकट कर इनाम दिया और कहा तेरे कृत्य की अधिक क्या तारीफ करुं ! चितारा बोला कि महाराज! अभी जमीन तैयार की है उसमें जो चित्र होंगे उसकी प्रभा अधिक होगी, और चिरकाल तक चित्र रहेंगे राजा बोला ठीकहै जैसा योग्य लगे बैसा करो इस दृष्टांत से यह सूचित किया है कि श्रावक धर्म पाने वाले पुरुषों के हृदय में ऊपर के २१ गुण आ जायेंगे तो गुरु का उपदेश विना भी गुरु के दर्शन से धर्म का स्वरूप जान जावेगा और थोडा बताने पर भी अधिफ अधिक ज्ञान होता जावेगा। धर्म का स्वरूप। धर्म दो प्रकार का है ( १ ) श्रावक धर्म ( २ ) साधु धर्म । श्रावक धर्म के भी दो भेद हैं देशविरित, अविरति, श्रावक के और लक्षण भी शास्त्र में बताये हैं। अमूल्य मनुष्य जन्म पाकर सद्गुरु की शोध में रहकर धर्म स्वरूप अच्छी तरह समझकर यथा शक्ति ब्रत पच्चक्खाण कर सब संसारिक कार्य भी कोमल भाव से करे, और जीव अजीव का स्वरूप समझकर जीवों को म्यर्थ दुःख न होवे इस लिये अनर्थ दंड छोडे और अर्थ दंड में भी यतना से बर्तन करे जैसे अपनी रक्षा करे ऐसे और जीवों को भी पीड़ा न होवे इस तरह संभाल से चले।

Loading...

Page Navigation
1 ... 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78