Book Title: Dharmratna Prakaran
Author(s): Manikyamuni
Publisher: Dharsi Gulabchand Sanghani

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Page 35
________________ (३१) महाधन नामका एक सेठ राजग्रही नगरीमें रहता था उसकी भार्या सुभद्रा नाम की थी उसके चार सुशील पुत्र धनपाल, धनदेव, धनगोपं, धनरक्षित नाम के थे. वे सभी ७२ कला युक्त होने पर भी अपनी सौजन्यता से लोगों को प्रसन्न करने वाले थे तोभी बृढा सेठ विचारने लगा कि भविष्य में उनकी भार्या उनका धनका दुरुपयोग न करे और सब मिलकर घर में शांति में रहे इसलिये उनकी परीक्षा कर उनके घर का भार देना चाहिये ऐसा निश्चय कर अपने रिस्तेदारों को एक दिन नोता देकर जिमने बुलाया वे सभी आये तब जिमा कर उनके सामने पुत्र बधुओं को बुलाकर मुंठी मुंठी अनाज दिया कि उनको रखो जब कार्य पडेगा तब मैं तुम्हारे से पीछा लूंगा जो "उझिता"थी वो विचारने लगी कि ऐसा अनाज घर में बहुत भरा है, क्यों रखना, उसी समय घर में जाकर अनाज को फेंक दिया दूसरी "भक्षिका" नाम की थी वो बिचारने लगी कि अनाज को व्यर्थ क्यों फेंकना ! घर में जाकर खा गई, तीसरी रक्षिका थी उसने विचार कर संदक में संभाल कर रख दिया चौथी जो रोहिणी थी उसने विचार कर अपने बाप के वहां बोने को भेज दिया। - थोड़े वर्ष जाने बाद इसी तरह रिस्तेदारों को जिमा कर सब के सामने बहूओं के पास वोही अनाज मांगा चार बहूओं ने पास आकर अनाज देने के समय तीनोंने एक एक मूठी पीछा दिया किन्तु चोथी बहू बोली यदि आप को अनाज पीछा चाहिये तो मेरे बाप के वहां से मंगालो किन्तु गाडे भेजकर मंगाना सेठने चारों को सत्य २ बात कहने को कहा उनका उत्तर सुनकर उनके योग्य घर में कार्य दिया और कहा कि जो आप उसे उलंघन करोगे तो मेरे धन का मालिक नहीं हो सकोगे ! उज्झिता को घर का कूडा निकाल फैंकने को दिया, भक्षिका को रसोई बनाने का, और रक्षिकाको घरको घेना हीरामाणिक वगैरह दिया और रोहिणी को घर की स्वामिनी बनाकर उसे सब अधिकार दिया इस दृष्टांत से मालुम होगा कि दीर्घदर्शीपना जिसमें ज्यादा था उस बधू को सत्र का स्वामित्व मिला ऐसे ही दीर्घदर्शी पुरुष : इस लोक में धर्म पाकर कीर्ति बढाता है परलोक में मुक्ति का अधिकारी होता है !

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