Book Title: Dharmratna Prakaran
Author(s): Manikyamuni
Publisher: Dharsi Gulabchand Sanghani

View full book text
Previous | Next

Page 39
________________ (३५) राजा भी प्रसन्न होगया और अपने पास उस लडके को रखा. एक समय राजा महावीर प्रभु को वंदन करने को गया, और जब महावीर प्रभु को श्रेणिक राजा ने नमस्कार किया उसी समय लडके ने भी नमस्कार. किया. उसकी विनीत प्रकृति से प्रभु ने उसे धर्म समझाया उसने कहा मैं आज से आप की सेवा करूंगा और शस्त्र लेकर हाजर रहूंगा. प्रभु ने कहा कि कर्म शत्र को जितने में और शस्त्र की आवश्यकता नहीं है. रजोहरण मुहपति से ही कार्य सिद्धि होती है, मात पिता की आज्ञा लेकर उसने प्रभु के पास दीक्षा ली इस लिये विनय गुण वाला ही धर्म भागी हो सकता हैं। श्रावक का १९ वा कृतज्ञता गुण । जो कृतज्ञ होता है वो तत्व बुद्धि से परमार्थ समझकर धर्मोपदेशक गुरु का बहुमान करता है और प्रति दिन गुरु महाराज उसे नयी २ हित शिक्षा देते हैं, इससे उसमें गुणों की वृद्धि होती है इस लिये धर्मका अधिकारी कृतज्ञ हो सक्ता है। तगरा नगरी में रतिसार नाम का राजा जैन धर्म पालने वाला था, उस का पुत्र भीमकुमार था. उसने सब कलाओं का समूह सीख कर विविध क्रीडाओं में रक्त होकर समय बिताने लगा जिससे राजा ने पुत्र को कहा बेटा ! अभी तुझे कला सीखनी बाकी है तो क्यों समय खेलने में खो रहा है ! उसने कहा कौनसी कला सीखने की है । बाप बोला धर्म कला, उस कला बिना सब कला व्यर्थ हैं. कुमार ने उसी समय धर्म कला सीखने को पिता की आज्ञा मांगी, बाप ने साधु के पास ले जाकर साधुजी से सोप कर लड़के को कहा उनकी सेवा कर पढ. लडके ने उस दिन से विनय पूर्वक धर्म शास्त्र पढना शुरू किया जिन मंदिर में जाकर चैत्य वंदन नमुत्थुणं जावंती चेइ आई, जावंत केविसाहु उवसग्ग हरं जयवीयराय स्तुति स्तोत्र पढ कर निरंतर द्रव्य पूजा भाव पूजा में रक्त रह कर विधि अनुसार सब क्रिया करने लगा और सामायिक प्रतिक्रमण जीव विचार नव तत्व श्रावक के योग्य पढने के जितने छूटे छूटे प्रकरण हैं वे पर कर आनंद मानने लगा, और अपने

Loading...

Page Navigation
1 ... 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78