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राजानेकहा कि मेरे शिर पर पैर देने वाले को क्या करना । एक युवान शीघ्र बोला के हे राजन! उस दुष्ट की इसी समय जान लेकर प्रत्यक्ष बताना चाहिए कि राजा के शिर में पैर लगाने से क्या फल मिलता है! राजा ने बूढे मंत्रीओं से पूछा कि आप की क्या राय है ? वे बोल विचार कर उत्तर देंगे. राजा की रजा लेकर वे सभी एकांत में जाकर परस्पर विचार कर राजा को कहा महाराज ! उसकी योग्य वस्तुओं से पूजा सत्कार होना चाहिये. राजा ने युवानों को बुलाये और पूछा कि क्यों आप समझे ? वे बोले नहीं. तब राजा की आज्ञा से एक बृद्ध मंत्री ने उन्हें समझायाकि राजा का प्रबल प्रताप से कौन उसके शिर पर पैर लगा सकता है । विचारो कि एक तो राजा जी अपनी मा के चरण में शिर झुकाते हैं उस माला का पेर लगने से आप उस को मार सक्त हो ? वे चुप होगये! एकही बात में युवक शांत होकर बृद्धों के चरणों में पड़े और अपनी तुच्छता छोड़ प्रत्येक कार्य में उनकी राय लेने लगे उत्तम जन की संगति से जैसे पारस पत्थर से लोहा भी सोना हो जाता है वेसे ही निर्गुणी भी गुणवान हो जाता है इस लिये गुण में भी जो बड़े हैं उनकी भी अधिक संगति करना और पाप से बचना ।
श्रावक का १८ वा विनय गुण । ___ सर्व गुणों का मूल विनय है, और सम्यक् दर्शन ज्ञान, चारित्र, जयेलोकोत्तर प्रधान गुण हैं उनका भी मूल है, इस लिये मोक्ष का मूल भी बिनय हैं इस लिये बिनीत पुरुष सर्वत्र प्रशंसा करने योग्य है। . एक छोटे गांव में एक नमीदार को लड़का कोमल स्वभाव का और बाप की आज्ञा में रहने वाला था. प्रभात में उठते ही उसके चरणों में शिर झुकाता था और हर समय “जीकार" से बडी इज्जत. से काम पडने पर बाप को बुलाता था. एक दिन उसके बाप ने गांव के जार्गारदार को आता देखकर उसे नमस्कार किया. लडका ने भी उसे शिर झुकाया जागीरदार ने छोटी उम्र में विनीत देख अपने पास रखा. एक समय जागीरदार उसे राज ग्रही नगरी में ले जाकर राजा श्रेणिक की सभा में खडा किया राजा को उस जागीरदार ने नमस्कार किया तब लडके ने भी नमस्कार किया.श्रेणिक