Book Title: Dharmratna Prakaran
Author(s): Manikyamuni
Publisher: Dharsi Gulabchand Sanghani

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Page 36
________________ (३२) - - ( १६ ) विशेषज्ञ गुण का वर्णन विशेषज्ञ प्राणीयोंका वा जड़ पदार्थों का गुण दोष जान कर विचार पूर्वक उनका उपयोग करता है, जिससे वो धर्म पा सकता है, और अनर्थ दंडवा पाप से बच सक्ता है. और पक्ष पाती कदाग्र ही के जाल में नहीं फँसता, म धर्म भ्रष्ट होता है, न दूसरों को फंसाता है। एक चौर का दृष्टांत । एक पुरुष पाप के उदय से चोरी करने लगा, और जहां तहां जाकर दव्य ढूंढने लगा एक समय पर तीन विदेशी पुरुष धन कमा कर स्वदेश में जाते थे उनके पीछे पीछे वो चला और उनके समान व्यापारी बनकर मित्र होगया, थोड़े दूर जाने के बाद व्योपारी विचारने लगे कि लूटारों का जंगल में गये बिना नहीं चलेगा और वे लूट लेंगे तो प्रथम उपाय करना ठीक है सबने द्रव्य व माल को बेच रत्न लिये, और तीनों ने अपनी जांघ में चीरा लगा कर उनमें रन रखकर सरोहिणी औषधि से घाव अच्छा कर लिया. चौथे ध्योपारी के पास इतना द्रव्य नहीं था जिससे वो उनका रक्षक हुआ और ध्योपारियों ने भी कहा कि तुझे हम देश में जाकर कुछ हिस्सा देंगे चोर विचार ने लगा कि मुझे तो सभी के रत्न लेने हैं अब अच्छा हुआ कि वे सब मेरा विश्वास भी करने लगे हैं। 'रास्ते में लटारों के स्थान में एक तोता आश्चर्य कारी था उसने कहा कि हे लूटारे ! आओ ! धन आ रहा है ! लूटारों ने व्यापारियों को पकड़े और कहा धन दे दो, और मुख से चले जाओ ! उन्होंने इंकार कियाऔर कहा कि हमारे पास कुछ नहीं है तव उनकी तपास कर छोड़ दिये तो भी तोता पुकार ने लगा कि मत जाने दो ! उनके पास धन है, तब उनको मारने का विचार किया तब चोर ने विचार किया कि यदि वे उनको पादित मारेंगे और रत्न निकाल लेंगे तो मैं बिना रत्न का भी मरूंगा, अब मृत्यु तो आया है। मरने के समय भी कुछ धर्म करूं । ऐसा विचार कर बोला कि हे लुटारे ! यदि जो आपको तोते का ही कहना सच्चा लगता है तो ये मेरे बड़े भाइयों को पीछे मारना मुझे ही पहिले मारदो !

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