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रह ऐसी जगह पर डाले कि जिससे कोई भी जीव को पीडा न हो इसलिये कहा है कि जो मास मास में एक हजार गायों को दान देवे उससे भी अधिक पुष जो साधु कुछ भी नहीं देता है उसे साधु व्रत पालन से ही होता है क्यों कि साधुओं में कोई भी जाति की स्पृहा नहीं होने से वे हितोपदेश ही करते हैं और सभी जीव को रक्षा कर उनको सुमार्ग में ले जाते हैं इतना सुनकर विजय सेठ साधु हो गया इस लिये परहित गुण धारण करने वाला ही धर्म पा सक्ता है।
. श्रावक का २१ वा गुण लब्ध लक्ष्य · धमकृत्यों को अच्छी तरह समझ करके पालने में लल्य लक्ष्य पुरुष योग्य होता है क्योंकि वो चतुर होता है, जिससे गुरू महाराज की थोड़ी भी वात उसे अधिक लाभदायी होती है, और गुरू महाराज के थोड़े प्रयास से और थोड़े समय में वो अधिकाधिक शास्रज्ञ होता है।
आर्य रक्षक मुनि की कथा. दशपुर नगर में सोमदेव ब्राह्मण की स्त्री रुद्र सोमा से आर्थ रक्षित पुत्र हुआ वो पाटलि पुत्र में और दूसरी जगह पढ कर १४ विद्या का पारंगामी होकर आया. राजा ने और नगरवासियों ने उसका बहुत आदर किया घर में आने पर सब परिवार ने भी उसे मान दिया किंतु माता तो कुछ भी बिना बोले चुप रही तो भी माता के पास जाकर उसके चरणों में सिर झुकाकर वंदन किया, तब माता ने आशीर्वाद दिया किंतु विद्या का सत्कार का कुछ भी लक्षण न वताया, जिससे माता से पूछा कि मेरे पढने पर और लोग इतना गौरव करते हैं और तू माता होने पर भी खुश नहीं होती उसका क्या कारण है, माताने कहा, हे वत्स! तूं जो विद्या पडा है उससे तूं यज्ञ कराकर निदोष पशुओं की धर्म के नाम पर हिंसा करावगा और पाप बढावेगा
और भविष्य में दुर्गति में जावेगा इसलिये मुझे आनंद नहीं होता, पुत्रने कहा, अब में क्या करूं? माता बोली, स्वपर हित चिंतक जैन धर्मका और दूसरे धमौका तत्व स्वरूप बताने वाला दृष्टि वाद अंग पढ जिससे सुगतिका भागी हो