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कर मुझे ही दगा दिया है, घर बालों से सब बात सुनाई और पीछे कहने लगा कि अब कसाइयों को ले जाकर इनकी चमड़ी उतराऊंगा, घर वालों ने उसका ऐसा दुष्ट स्वभाव जान कर घर वाले सब चमक गये और उन्होंने ने विचारा कि कोई दिन हमारी भी ऐसी ही दशा करेगा, इस लिये उन्हों जाति के लोगों को बुला कर सब बात जाहिर करदी, जाति वालों ने ब्राह्मण की जगह चांडाल समझ कर जाति से बाहिर कर दिया। इस लिये क्रोधी, कर पुरुष को धर्म की प्राप्ति होनी दुर्लभ है कितने ही जन घर में दूसरों को बात ही बात में सताते रहते हैं और घरवाले उसकी मृत्यु चाहते हैं कि कब इस पापी से हमारी मुक्ति होवे ऐसा विचारा पामर कहां से धर्म पा सके ? कितने ही साधुप में भी अत्यंत क्रोधी होकर झगड़े करते फिरते हैं और गुरुजी प्रश्चात्ताप करते हैं कि ऐसे दुष्ट को दीक्षा देकर सिर्फ कर्म बंधन ही सिर पर लिया है इस लिये प्रत्येक पुरुष को क्रूरता छोड़नी चाहिये । अभ्यास से से ही आदत सुधर सक्ती है ।
( ६ ) पाप भीरुता श्रावक का छठा गुण है ।
इस लोक में राज्य दंड और लोकापवाद को प्रत्यक्षं देख कर परलोक में पापों की शिक्षा अवश्य होवेगी ऐसा विचार ने वाला, श्रद्धालु पापभीरु पुरुषही धर्म पा सक्ता है और विवेक से विचार कर प्रत्येक कार्य करता है जिस से वह धर्म की अच्छी तरह से आराधना का और सुगति का भागी हो सक्ता है।
राजा कि मगध देश में राज्य करता था उस समय राज ग्रही नगरी में काल सुरीक नाम का एक कसाई हजारों जीवों की हत्या कर धन बढ़ाता था किन्तु साथ साथ सातवी नार की में जाने के लिये पाप पुंज की ग ठड़ी बांध रहाथा, मरने के थोड़े समय पहिले उसके अनेक रोग हुये, और अग्नी में जलने की तरह उसके शरीर में पीड़ा होने लगी, उस कसाई का लड़का सुलस पूर्व पुण्य से सुशील और दयालु था, जिससे बाप के दुष्ट कृत्यों से घृणा करता था तो भी उस बाप की अंतिम अवस्था में समाधी होवे इस लिये सुलसने अनेक शांति के उपाय किये किन्तु बाप के पाप के उदय से उन उपायों से अधिक से अधिक पीड़ा हुई जिससे लड़का घबराया और