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और उनके वचनों का परमार्थ पूछा. उसी समय एक छात्रने पंडित जीसे पूछा कि मैंने अपने गुरुजी की स्त्री का स्पर्श किया उसका क्या प्रायश्चित है? पंडित जीने कहा कि गरम लोहेकी पुतली से स्पर्श ( आलिंगन) करो। गरम पुतली मंगाकर जहां लड़का स्पर्श करने लगा कि तुर्त पंडितजीने रोका कि बस । हो. गया प्रायश्चित । लड़के की धैर्यता की सब प्रशंसा करने लगे।
सोमवसु भी पूछने लगा कि मेरा यह दोष है उसका मुझे प्रायश्चित दो, और पूर्व के तीन वचनों का परमार्थ समझावो कि मिठा खाना, सुख से सोना लोगप्रिय होना वो क्या है।
पंडितने उत्तर दिया कि देखो यह मट्टी के दो गोले है उनमें भीतको को न लगता है? सूखा वा गीला? सोमबसु बोला कि गीला! पंडितने कहा कि ख्याल रखो कि इस तरह संसार में ममत्व से पाप होता है इसलिये राग छोड़ो सोमवसु बोला ठीक, चारित्र लूगा अब तीन बचनों का परमार्थ सगझावो, पं. डित बोला कि । जो सर्वथा त्यागी है, उसके पास दीक्षा लो वो समझायेगा. तो भी सोमवसुंने पूछा तब पंडित बोला कि जो राग द्वेष रहित आरंभ पाप के त्यागी शुभ ध्यान में रक्त होकर सोता है वो सुख से सोता है, और भंवराकी तरह गोचरी लाकर निर्दोष वृत्ति से जीवन गुजारने से परभवमें सद्गति के सुख भोगता है, और जडीबूटी मंत्र चमत्कार बिना ही परलोकके हितार्थ रक्त रहता है वो सब उत्तम लोगोंको माननीय बंदनीय और प्रिय होता है न किसी के घ. न मालकी वांछा करता है! ऐसे गुरुकी शोध में सोमवसु पंडितकी रजा लेकर चला, रास्ते में एक उद्यान में सुघोष गुरु मिले, उनहे मिल बात चित की गुरु ने समझाया रात्तको उनके पास ही सोगया मधरात के समय वैश्रमण (कुबेर) लोगपाल आया और सुघोष आचार्य को वंदन कर बोला कि आपने जो मूत्र पढा उससे मेरा चित्त प्रसन्न हुआ है। इसालये आज्ञा करो कि मेरा क्या प. योजन था! क्या चाहते हैं, आचार्यने कहा कि प्रयोजन नहीं हैं. सिर्फ सूत्रोंको याद करना और उसमें रात्रिका निर्वाह करना इसलिये सूत्र पहा था आपको धर्म लाभ हो, कुबेर वंदन कर अदश्य हुआ. प्राचार्य की निस्पहता देख सोमवसु को स्थिरता होगई और परिचय से मालूम भी होगया कि जैसे बोलते हैं वैसा पालन करने वाले भी हैं. उसने वहां ही दीक्षा ली और सद्गतिका भागी हु.