Book Title: Dharmratna Prakaran
Author(s): Manikyamuni
Publisher: Dharsi Gulabchand Sanghani

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Page 23
________________ (२०) भ (पृष्ट २१ वें में आठवां गुण का वर्णन पूरा कर उसे पड़ो।) ॥ श्रावक का नवमा गुण लज्जालुता ॥ जो लज्जालु होता है वो थोड़ा भी अकार्य नहीं करेगा, सदा चार का आदर कर उसे अच्छी तरह पालन करता है, और प्राणांत का आने पर भी उसे छोड़ता नहीं हैं। ' एक नगर में चंड रुद्र नाम के आचार्य आये वे चारित्र में दृढ़ होने पर भी क्रोधी अधिक होने से निरंतर एकांत में बैठ सूत्र पठन और स्मरण में रहते थे एक दिन एक शेठ का पुत्र रात को मित्रों के साथ साधुओं के पास आया उस वक्त नव विवाहित युवक के मित्रों ने वाल चेष्टा से कहा साधुनी महाराज ! हमारा यह मित्र वैरागी होकर आपके पास दीक्षा लेने को आया है आप उसे साधु बनादो । चेले समझ गये कि ये ठट्ठा करते हैं उत्तर नहीं दिया वारंवार मित्रों ने चेलों को सताये अतएव शिष्यों ने कहा कि आप हमारे गुरु महाराज के पास ले जाओ ऐसा सुन वे भीतर कमरे में जाकर गुरु जी से भी वही कहने लगे, गुरु जी चुप रहे किंतु मित्रों ने परणे हुए लड़केको आगे कर लीजिये महाराज! इसे चेला बनाइए! तो भी गुरुजी न बोले तब उन्होंने धक्का देकर उस युवक को गुरु के पास भेजा गुरु ने लड़के को पूछा क्यों तू दीक्षा लेना चाहता है ? उसने कहा हां, तब ठीक है ऐसा कह कर एक दम गुरु ने क्रोधित हो उसे पास बैठा कर लोच करना शुरू किया मित्र पकराये और भागे जाते जाते बोले कि हम तो हांसी करते थे. आप उसे छोड़दो गुरुजी ने लोच करके कहा यदि हांसी की है तो उसका यह दंड है अब जैसी तेरी इच्छा, नव युवक विचार ने लगा कि अब घर को किस तरह जाऊं? मा बाप भी क्रोधी होंगे मैंने साधुओं को व्यर्थ सताये तो अब घर को क्यों माउं? मुंद होकर लोगों को मुंह कैसे दिखाऊं ? और जो गुरु के सामने दीक्षा लेनी स्वीकार किया है तो उसे पार उतारना ही चाहिये। - सज्जन पुरुषों के वचन पत्थर में खुदे हुए लेख की तरह अमिट होते हैं ऐसा निश्चय कर वो बोला कि हे गुरो ! आप उन लड़कों के कहने पर स्याल न कीजिये मैं तो सच्चा ही आपका शिष्य हुआ हूं और वो पार

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