Book Title: Dhammam Sarnam Pavajjami Part 2 Author(s): Bhadraguptasuri Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba View full book textPage 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir KAN धर्मबिंदु-सूत्राणि ० सोऽयमनुष्ठातृभेदात् द्विविधो गृहस्थधर्मो यतिधर्मश्चेति ।।१।। ० तत्र गृहस्थधर्मोऽपि द्विविधः सामान्यतो विशेषतश्चेति ।।२।। ० न्यायोपात्तं हि वित्तमुभयलोकहिताय ।।३।। ० अनभिशंकनीयतया परिभोगाद् विधिना तीर्थगमनाच्च ।।४।। ० अहितायैवान्यद् ।।५।। ० तदनपायित्वेऽपि मत्स्यादिगलादिवत् विपाकदारुणत्वात् ।।६।। ० न्याय एव ह्याप्त्युपनिषत्परेति समयविदः ||७|| ० ततो हि नियमतः प्रतिबन्धककर्मविगमः ।।८।। ० सत्यस्मिन्नायत्यामर्थसिद्धिरिति ।।९।। ० अतोऽन्यथापि प्रवृत्तौ पाक्षिकोऽर्थलाभो निःसंशय स्त्वनर्थः ।।१०।। ० समान कुल-शीलादिभिरगोत्रजैःवाह्यमन्यत्र बहुविरुद्धेभ्यः ||११।। ० दृष्टादृष्टबाधाभीतता ।।१२।। ० शिष्टचरितप्रशंसनम् ।।१३।। ० तथा - अरिषड्वर्गत्यागेनाविरुद्धार्थप्रतिपत्येन्द्रियजय इति ।।१४।। For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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