________________ ( xxv ) आगम ग्रन्थों से ये गाथाएँ 'देवेन्द्रस्तव' में ली गयी हो / यद्यपि यह एक कठिन और विवादास्पद प्रश्न हो सकता है किन्तु फिर भी हमारी दृष्टि में कुछ तथ्य ऐसे हैं जिनसे यह फलित होता है कि ये गाथाएँ 'देवेन्द्रस्तव' से ही आगम ग्रन्थों में गयी हैं। इस सम्बन्ध में हम विद्वानों से गम्भीर चिन्तन की अपेक्षा करते हैं और यदि वे अन्य कोई प्रमाण प्रस्तुत कर सके तो हमें अन्यथा मानने में भी कोई विप्रतिपत्ति नहीं होगी। किन्तु हमारा जो यह मानना है कि ये गाथाएँ 'देवेन्द्रस्तव' से इन आगम ग्रन्थों में गयी हैं, निराधार नहीं है और विद्वानों को अन्यथा निर्णय लेने के पूर्व उन आधारों पर विचार कर लेना चाहिए (1) प्रथम तो यह कि सूर्यप्रज्ञप्ति, प्रज्ञापना, स्थानांग, समवायांग ये सभी ग्रन्थं गद्यात्मक शैली के हैं और इनमें से अधिकांश में तो "गाहाओ" कहकर ही इन गाथाओं को प्रस्तुत किया गया है / सामान्यतया गद्यात्मक ग्रन्थ में उस विषय से सम्बन्धित गाथाओं को 'गाहाओ' लिख कर कहीं से अवतरित ही किया जाता रहा है। चूंकि यहाँ भी वे गाथाएँ अवतरित की गयी हैं अतः इन गाथाओं का रचना-काल इन ग्रन्थों से पूर्व ही मानना चाहिए। यदि हम गाथाओं को परवर्ती मानते हैं तो यह मानना होगा कि आगे चलकर ये गाथायें उन ग्रन्थों में सम्मिलित कर ली गयी हैं। . ( 2 ) जिन ग्रन्थों में ये गाथाएँ मिली हैं, उनमें से सूर्यप्रज्ञप्ति को छोड़कर स्थानांग, समवायांग, प्रज्ञापना, जीवाभिगम आदि सभी को विद्वानों ने ईस्वी सन् की प्रथम शताब्दी या उसके पश्चात्कालीन रचना माना है / स्थानांग और समवायांग तो परवर्ती संकलन ग्रन्थ हैं / स्थानांग में वीर निर्वाण के 584 वर्ष पश्चात् हुए निह्नवों का तथा ई० पू० प्रथम शती के गणों का उल्लेख होने से यह ई० सन् प्रथम शती के पूर्व की रचना नहीं माना जा सकता। इसी प्रकार प्रज्ञापना के कर्ता आर्य श्याम कल्पसत्र की स्थविरावली के अनुसार ऋषिपालित से परवर्ती हैं अतः सम्भावना यही है कि 'देवेन्द्रस्तव' से ही ये गाथायें इनमें गयी हैं। हो सकता है कि सूर्यप्रज्ञप्ति में इन्हें बाद में सम्मिलित किया गया हो। (3) पुनः जहाँ 'देवेन्द्रस्तव' एक सुव्यवस्थित रचना है वहाँ दूसरे आगम ग्रन्थों में प्रसंगानुसार ये गाथाएं समाहित की गयी प्रतीत होती हैं / इन गाथाओं को भाषा-शैली से भी ऐसा लगता है कि यह एक ही व्यक्ति और एक ही काल को कृति है, जबकि जिन आगमों में ये गाथाएँ