________________ देवेन्द्रस्तव 309. भवनवति, वाणव्यंतर, ज्योतिष्क, विमानवासी (देव) और ऋषिपालित स्व-स्व बुद्धि से जिनेन्द्र देवों की महिमा का वर्णन करते हैं। [देवेन्द्रस्तव का उपसंहार ] 310. वीर और इन्द्रों की स्तुति के कर्ता ऋषिपाल का कल्याण हो। सभी इन्द्र आदि जिनकी सदा स्तुति और किर्तन करते हैं, वह सुरअसुरों के गुरु सिद्ध, सिद्धि को प्रदान करें। 311. इस प्रकार भवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिषिक और विमानवासी देवनिकाय देवों की स्तुति समग्र रूप से समाप्त (हुई)।