________________ देविदत्थओ जस्स ( वद्धमाण )6/1 दिमो (वंद) व1/2 सक अवगयमाणस्स* [ ( अवगय ) भूक अनि - ( माण )6/1 वि] * कभी-कभी षष्ठी का प्रयोग द्वितीया के स्थान पर पाया जाता है / (हेम प्रा० व्या० 3/134) / 5. विणयपणएहिं [ (विणय )- ( पणय ) भूकृ 3/2 अनि.] सिढिलमउडेहि [ ( सिढिल) - (मउड )3/2.वि] अपडिम* ( अपडिम ) मल शब्द 6/1 जसस्स (जस )6/1 वि देवेहि (देव) 3/2 पाया ( पाय )2/2, पंसतरोसस्स [ (पसंत) भूकृ अनि - ( रोस )6/1] वंदिया (वंद ) भू कृ 1/2 वदमाणस्स (बद्ध माण)6/1 * किसी भी कारक के लिए मूल संज्ञा शब्द काम में लाया जा सकता है (पिशेल प्राकृत भाषाओं का व्याकरण-पृ० 517) / 6. बत्तीस* (बत्तीस )2/1 देविदा ( देविंद )1/2, जस्स ( ज )6/1 गुणेहि ( गुण )3/2, उवहम्मिया ( उवहम्म) भूकृ 1/2 बादं ( क्रिविअ ) = अतिशयरूप से तस्स (त) 6/1 स चिय ( अ ) =ही च्छेयं ( छेय )2/2 वि, पायच्छायं [ ( पाय )- (च्छाय) 2/1 वि/ उवेहामो ( उवेह ) व 1/2 सक। * कभी कभी द्वितीया का प्रयोग प्रथमा के स्थान पर भी पाया जाता है (हेम प्रा० व्या० 3/137 वृत्ति) / 7. बत्तोस* ( बत्तीस ) 2/1 देविंद ( देविंद ) मूल शब्द 1/2 भणियं (भण ) भृकृ 1/1 सा ( सा) 1/1 सवि पियं ( पिय ) 2/1 भणइ ( भण) 3/1 अंतरभासं ( अंतरभास ) 2/1 ताहे ( ता) 7/1 स काहामी** ( काह) व 1/1 सक कोउहरलेणं (कोउहल्ल) 3/1 * कभी-कभी द्वितीया का प्रयोग प्रथमा के स्थान पर भी पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3/137 वृत्ति) / ** सन्द पूर्ति के लिए 'काहामि' का 'काहामी' लिखा गया है।