Book Title: Devindatthao
Author(s): Subhash Kothari, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan

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Page 209
________________ 136 देविदत्थओ 241. सत्तावीसं ( सत्तावोस ) 1/1 जोयणसयाई [ (जोयण ) - (सय) 1/2 ] पुढवीण ( पुढवी) 6/2 होइ (हो ) व 3/1 अक बाहल्ल (बाहल्ल ) 1/1 सोहम्मोसाणेसुं [ ( सोहम्म )+( ईसाणेसु)] [ ( सोहम्म) - ( ईसाण) 7/2 ] रयणविचित्ता [ ( रयण )(विचित्त) 1/2 ] य ( अ ) = और सा ( स ) 1/1 स पुढवो ( पुढवी ) 1/1 242. तत्थ ( अ ) = उसमें विमाण ( विमाण ) मूलशब्द 1/2 बहुविहा ( बहुविह ) 1/2 पासाया (पासाय ) 1/2 य ( अ ) = और मणिवेइयारम्मा [ ( मणि )- ( वेइया ) - ( रम्म ) 1/2 ] वेरुलियथूभियागा [ ( वेरूलिअ )- (थूभियागा ) मूलशब्द 1/2 ] रयणामयदामऽलंकारा [ ( रयणामय ) + ( दाम ) + ( अलंकारा)] [ ( रयणामय ) - ( दाम )- ( अलंकार ) 1/2 ] 243. केइत्यऽसियविमाणा [ (के) - ( इत्थ) - ( असिय) ( विमाणा) ] के ( क ) 1/1 स इत्थ (अ) = अतः असिय (असिय) मूलशब्द 1/2 विमाणा (विमाण) 1/2 अंजणधाऊसमा [ (अंजण) - ( धाउ) - ( सम ) 1/2 ] सभावेणं ( सभाव ) 3/1 अहयरिट्ठयवण्णा [ ( अद्ध ) 'य' स्वार्थिक - (रिट्ठ) 'य' स्वार्थिक - ( वण्ण ) 1/2 ] जत्थाऽऽवासा [ ( जत्थ ) + ( आवासा)] जत्थ (अ) = जिसमें आवासा ( आवासा) 1/2 सुरगणाणं [ ( सुर) - (गण ) 6/2] * छन्द की मात्रा- पूर्ति लिए ह्रस्व का दीर्घ हो जाया करता है / 244. केह ( क ) 1/1 स - इ य ( अ ) = और हरियविमाणा [ (हरिय) -( विमाण ) 1/2 ] मेयगधाउसरिसा [ (मेय) - 'ग' स्वार्थिक (धाउ) - सरिस) 1/2] सभावेणं (सभाव) 3/1 मोरग्गोवसवण्णा [(मोरग्गी) + (इव) + (सवण्णा)] [ (मोरग) इव (अ) = समान - ( सवण्ण ) 1/2 ] जत्थाऽवासा [ ( जत्थ ) - ( आवासा)] जत्थ (अ) = जिसमें आवासा (आवास) 1/2 सुरगणाणं [ (सुर) -(गण) 6/2]

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