________________ देवेन्द्रस्तव 75. वे उत्कृष्ट ( आकार के भवन ) जम्बूद्वीप के समान, छोटे ( आकार के भवन ) ( भरत ) क्षेत्र के समान और मध्यम आकार के श्रेष्ठ भवन विदेह क्षेत्र के समान ( होते हैं ) / 76. जिनमें व्यंतरदेव श्रेष्ठ तरुणियों के गीत और वाद्यों की आवाज के कारण नित्य सुख-युक्त व प्रमुदित (रहते हुए) व्यतीत हुए काल को भी नहीं जानते हैं। 77. उसी तरह काल, सुरूप, पूर्ण, भीम, किन्नर, सत्पुरुष, अतिकाय, गीतरति, ये आठ ( इन्द्र ) दक्षिण दिशा की और होते हैं। 78. मणि, स्वर्ण और रत्नों के स्तूप और सोने की वेदिका से युक्त इनके भवन दक्षिण दिशा को ओर होते हैं और शेष (व्यंतर इन्द्रों के भवन) उत्तर दिशा के पार्श्व में ( होते हैं ) / 79. व्यंतर देवों की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष ( है ) ( और ) उनकी उत्कृष्ट स्थिति एक पल्योपम ( है ) / 80. इस प्रकार व्यंतर देवों के भवन और स्थिति संक्षेप से कही गयी / ( है.) ( अब ) श्रेष्ठ ज्योतिष्क देवों के आवास के विवरण को सुनो। [पाँच प्रकार के ज्योतिष्क देव] .. 81. चन्द्र, सूर्य, तारागण, नक्षत्र और ग्रहगण समूह ( ये सब ) पांच प्रकार के ज्योतिषी देव कहे गये ( हैं ) ( अब ) उनकी स्थिति और गति ( कही जायगी)। . [ज्योतिषी देवों के स्थान, विमान-संख्या, विमानों की लम्बाई, .. मोटाई, परिधि, विमानवाहक व किंकर देव] . 82. तिर्यक् लोक में ज्योतिषियों के अर्द्धकपित्थ फल के आकारवाले, स्फटिक रत्नमय, रमणीय असंख्यात विमान ( हैं ) / ___83. ( रत्नप्रभा पृथ्वी के ) सम भूभाग से सात सौ नब्बे योजन (ऊंचाई तक का तल ) निम्न तल होता है / पुनः (उस सम भूभाग से ) सूर्य आठ सौ ( योजन ) ऊपर ( है ) /