________________ देवेन्द्रस्तव 239. अबाह्य ( अर्थात् जन्मना ) अवधिज्ञान को (लिए हुए ) नारकीय, देव और तीर्थंकर होते हैं। वे पूरी तरह देखते हैं और शेष (अवधिज्ञान वाले) अंशों से देखते हैं / ___240. मेरे द्वारा संक्षेप से यह अवधिज्ञान विषयक वर्णन किया गया ( अब ) पुनः विमानों के रंग, मोटाई एवं ऊँचाई को कहूँगा। [वैमानिक देवों के विमान, आवास, प्रासाद, आयु, उच्छ्वास और देह आदि का वर्णन] 241. सत्ताईस सौ योजन पृथ्वी की मोटाई होती है। सौधर्म और ईशान ( कल्पों ) में वह पृथ्वी रत्नों से विचित्रित ( होती है ) / 242. सुन्दर मणियों की वेदिकाओं से युक्त, वैडूर्य मणियों की स्तूपिकाओं से युक्त, रत्नमय मालाओं और अलंकारों से युक्त, बहुत प्रकार के प्रासाद ( उस विमान में होते है ) / - 243. उसमें जो कृष्ण विमान (हैं ), ( वे ) स्वभाव से अंजन धातु के सदृश्य तथा मेष और काक के समान वर्ण वाले ( है ), जिनमें देवताओं का निवास ( है ) / . 244. उनमें जो हरे रंग वाले विमान ( हैं ), ( वे ) स्वभाव से मेदक धातु के सदृश्य तथा मोर की गर्दन के समान वर्ण वाले ( हैं ), जिनमें देवताओं का निवास ( है ) / 245. उनमें कोई दीपशिखा के रंगवाले ( विमान हैं वे ) जपा पुष्प एवं सूर्य के सदृश्य और हिङ्गुल धातु के समान वर्ण वाले ( हैं ) 'जिनमें देवताओं का निवास ( है ) / . ___246. उनमें जो कोई कोरण्ट धातु के समान रंग वाले ( विमान . हैं ), ( वे ) खिले हुए फूल की कणिका के सदृश्य और हल्दी के समान पीले रंग वाले ( है ), जिनमें देवताओं का निवास ( है ) / .. 247. ( ये देव समूह ) कभी न मुरझानेवाली मालाओं वाले, निर्मल देह वाले, सुगन्धित निःश्वास वाले, सभी अवस्थित वय वाले, स्वयं प्रकाशमान और अनिमिष आँखों वाले ( होते है ) /