________________ देवेन्द्रस्तव 266. सुन्दर मणियों की वेदिकाओं से युक्त, वैडूर्य मणियों की स्तुपिकाओं से युक्त, रत्नमय मालाओं और अलंकारों से युक्त बहुत प्रकार के प्रासाद ( उन विमानों में होते हैं ) / 267. उन कल्पों में शंख के समान और हिम के समान ( शुक्ल वर्ण वाले ) नौ सौ ऊँचे प्रासाद ( शोभित होते हैं ) / 268. वहाँ पर सैकड़ों मणियों से जटित, बहुत प्रकार के आसन शय्याएं, सुशोभित विस्तृत वस्त्र, रत्नमय मालाएं और अलंकार ( होते हैं)। ____ 269. ग्रैवेयक विमानों में बावीस सौ योजन पृथ्वी की मोटाई होतो है। वह पृथ्वी रत्नों से विचित्रित ( होती है ) / 270. सुन्दर मणियों की वेदिकाओं से युक्त, वैडूर्य मणियों की स्तूपिकाओं से युक्त, रत्नमय मालाओं और अलंकारों से युक्त बहुत प्रकार के प्रासाद ( उन विमानों में होते है ) / : 271. उन ( ग्रैवेयक कल्पों में ) शंख के समान और हिम के समान ( शुक्ल वर्ण वाले ) एक हजार ऊंचे प्रासाद शोभित होते हैं / 272. वहां पर सैकड़ों मणियों से जटित, बहुत प्रकार के आसन शय्यायें, सुशोभित विस्तृत वस्त्र, रत्नमय मालायें और अलंकार ( होते हैं)। . . 273. पांच अनुत्तर विमानों में इक्कीस सौ योजन पृथ्वी की मोटाई होती है। वह पृथ्वी रत्नों से विचित्रित ( होती हैं ) / ___ 274. सुन्दर मणियों की वेदिकाओं से युक्त, वैडूर्य मणियों की स्तूपिकाओं से युक्त, रत्नमय मालाओं और अलंकारों से युक्त बहुत प्रकार के प्रासाद ( उन विमानों में होते हैं ) / 275. उन ( अनुत्तर कल्पों में ) शंख के समान और हिम के समान (शुवल वर्ण वाले ) ग्यारह सौ ऊँचे प्रासाद शोभित होते हैं /