________________ देवेन्द्रस्तव [अनुत्तर देवों को विमान संख्या, शब्द और स्वभाव ] 221. पाँच प्रकार के अनुत्तर देव गति, जाति और दृष्टि की अपेक्षा से श्रेष्ठ हैं और अनुपम विषय-सुख को प्राप्त (करते है)। 222. (अनुत्तर विमानों में देवों के ) जिस प्रकार सर्वश्रेष्ठ गंध, रूप और शब्द होते हैं, उसी प्रकार अचित्त पुद्गलों के भी (सर्वश्रेष्ठ) रस, स्पर्श और गंध (होती है)। 223. जैसे भँवरा प्रस्फुटित. कलि, विकसित कमल रज और श्रेष्ठ कुसुम के मकरंद का सुखपूर्वक पान करता है (उसी प्रकार देव भी पौद्गलिक विषयों का सेवन करते हैं)। 224. हे सुन्दरी ! (वे सभी देवता) श्रेष्ठ कमल के समान गौर वर्ण वाले, एक ही उत्पत्ति स्थान में निवास करने वाले (अर्थात् जन्म लेने वाले होते हैं) ( और वे ) उस उत्पत्ति स्थान से विमुक्त होकर सुख का अनुभव करते हैं। [ देवों का आहार और उच्छ्वास ] 225. हे सुन्दरी ! अनुत्तर विमानवासी देवों की तैंतीस हजार वर्ष पूर्ण होने पर आहार (ग्रहण करने की इच्छा) होती है / . 226. मध्यवर्ती आयु को धारण करने वाले देव सोलह हजार पाँच . सौ वर्ष पूर्ण होने पर आहार ग्रहण करते हैं / 227. जो देव दस हजार वर्ष की आयु को धारण करते हैं, उनमें आहार एक-एक दिन के अन्तर से होता है। 228. हे सुंदरी ! एक वर्ष और साढ़े चार माह में अनुत्तरविमानवासी देवों के उच्छ्वास ( होता है ) / 229. हे सुतनु ! मध्यम आयु को धारण करने वाले देवताओं के आठ माह साढ़े सात रात-दिन के होने पर उच्छ्वास (होता है)।