________________ देवेन्द्रस्तव 212. विमानों की पंक्तियाँ वर्तुलाकार के ऊपर वर्तुलाकार, त्रिभुजाकार के ऊपर त्रिभुजाकार और चतुर्भुजाकार के अर चतुर्भुजाकार (होती हैं)। 213. सभी विमानों की अवलम्बन रज्जु पर से नीचे तक और एक छोर से दूसरे छोर तक समान होती हैं। [कल्पपति विमानों का स्वरूप ] 214. सभी वर्तुलाकार विमान प्राकार से घिरे हुए होते हैं। (और) चार कोण वाले विमान चारों दिशाओं में वेदिका (युक्त) कहे गये हैं। 215. जिधर वर्तुलाकार विमान होते हैं, उधर ही त्रिभुजाकार विमानों की वेदिका होती है, शेष पार्श्व भाग में प्राकार (होते हैं)। __216. सभी वर्तुलाकार विमान एक द्वार वाले होते हैं / त्रिभुजाकार विमान में तीन और चतुर्भुजाकार विमान में चार (दरवाजें) होते हैं / [भवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिषिक के भवन, नगर और विमान संख्या 217. भवनपति देवों के सात करोड़ बहत्तर लाख (भवन) होते हैं / यह भवनों का संक्षिप्त कथन (है)।। 218. तिर्यञ्च लोक में उत्पन्न होने वाले वाणव्यंतर देवों के असंख्यात भवन (होते हैं) उससे संख्यात गुणा (अधिक) ज्योतिषी देवों के विमान (होते हैं)। . . [चतुर्विध देवों का अल्पबहुत्व ] 219. विमानवासी देव अल्प (संख्यक हैं), (उनको अपेक्षा) व्यंतरदेव असंख्यात गुना (अधिक है), (उनसे) संख्यात गुना (अधिक) ज्योतिष्क देव हैं। [वैमानिक देवियों को विमानसंख्या ] 220. सौधर्म कल्प में देवियों के पृथक् विमानों की (संख्या) छ: लाख होती हैं और ईशान कल्प में चार लाख होती हैं।