________________ देवेन्द्रस्तव 188. तीन-तीन पंक्तियों में ग्रेवेयक देवों के विमान होते हैं। अनुत्तरोपपातिक देवों के विमान हुल्लक ( पुष्प ) के आकार वाले ( होते हैं ) / [वैमानिक देव विमानों के आधार] 189. (सौधर्म और ईशान) दोनों कल्पों में देवविमान घनोदधि पर प्रतिष्ठित (हैं), (सनत्कुमार, माहेन्द्र और ब्रह्म इन) तीनों कल्पों में (देव विमान) वायु पर प्रतिष्ठित (हैं) और लान्तक, महाशुक्र और सहस्त्रार कल्प इन) तीनों (के विमान) (घनोदधि व घनवात) दोनों के आधार पर प्रतिष्ठित (हैं)। 190. उससे उत्तरवर्ती सभी (विमान) पर अवकाशान्तर पर प्रतिष्ठित (हैं)। उर्ध्व लोक में विमानों की यह आधार विधि (कही गयी है)। - [देवों की लेश्याएँ] 191. भवनपति और व्यन्तरिक (देवों में) कृष्ण, नोल, कापोत और तेजोलेश्या (होती है) / ज्योतिष्क, सौधर्म और ईशान (देव) में तेजोलेश्या कही गयी है। 192. इन सनत्कुमार, माहेन्द्र और ब्रह्मलोक कल्प में पद्म लेश्या (होती है), इनके उपर के विमानों में शुक्ल लेश्या (होती है)। . 193. (सौधर्म व ईशान) दोनों कल्पों वाले देवों में वर्ण तपे हुए सोने जैसे होते हैं / (सनत्कुमार, माहेन्द्र और ब्रह्म इन) तोनों (कल्पों के देवों का वर्ण) पद्म की तरह गोरा है और इनसे ऊपर (के देव) शुक्ल (वर्ण वाले होते हैं)। .. [देवताओं की ऊंचाई और अवगाहना] 194. भवनपति, वाणव्यन्तर और ज्योतिषिक (देवों को ऊँचाई) सात रनि (प्रमाण) होती हैं। हे सुन्दरो ! (अब) उत्कृष्ट कल्पपति देवों को ऊंचाई को सुनो। 195. सौधर्म व ईशान देव सात रत्नि (प्रमाण ऊँचाई वाले) होते हैं। दो-दो कल्प समान होते हैं और दो-दो में एक रत्नि नाप कम (होता जाता है)।