________________ देवेन्द्रस्तव 37 146. इस प्रकार चन्द्रमा वृद्धि को प्राप्त होता है और ऐसे ही चन्द्रमा का ह्रास होता है। इसी कारण से कालिमा (कृष्ण पक्ष) और ज्योत्स्ना (शुक्ल पक्ष) (होते हैं)। (ज्योतिषियों को गति और स्थिर विभाग] 147. मनुष्य लोक में उत्पन्न और संचरण करने वाले चन्द्र, सूर्य, ग्रह-समूह आदि पांच प्रकार के ज्योतिषिक देव होते हैं / 148. इसके अतिरिक्त (मनुष्य क्षेत्र के बाहर) जो चन्द्र, सूर्य, ग्रह, तारें और नक्षत्र (हैं) न तो (उनको) गति होती है और न हो संचरण / अतः उन्हें अवस्थित (स्थिर) जानना चाहिए। [जम्बूद्वीप में चन्द्र सूर्यों को संख्या और अन्तर] 149. ये (चन्द्र-सूर्य) जम्बूद्वीप में द्विगुणित (अर्थात् दो चन्द्र और दो सूर्य), लवण समुद्र में चारगुना (अर्थात् चार चन्द्र और चार सूर्य) और लवण समुद्र से तोगुने (अर्थात् बारह) चन्द्र (और बारह) सूर्य धातकीखण्ड में प्राप्त होते हैं। 150. ( इस प्रकार ) (जम्बू) द्वीप में दो चन्द्र ( एवं दो सूर्य ), लवण समुद्र में चार ( चन्द्र और चार सूर्य ), धातकोखण्ड में बारह चन्द्र और (बारह) सूर्य होते हैं। . 151. धातकीखण्ड के आगे के क्षेत्र में (अर्थात् द्वीप-समुद्रों में) (सूर्यचन्द्रों की संख्या को पहले के द्वीप समुद्र की संख्या का) तीगुना करके तथा उसमें ( उसके ) पूर्व के चन्द्र और सूर्यों को संख्या मिलाकर जानना चाहिए। ____ 152. यदि (तुम) द्वीप और समुद्र में नक्षत्र, ग्रह (एवं) तारा (और इनके प्रमाण) को जानने की इच्छा रखते हो ( तो एक ) चन्द्र (परिवार की संख्या ) से गुणा करने पर (उन द्वीप-समुद्रों के ) नक्षत्र, ग्रह और ताराओं की संख्या ज्ञात हो जाती हैं)।