________________ देवेन्द्रस्तव 23. हे सुन्दरी ! दो सुपर्ण इन्द्र-वेणुदेव और वेणुदालि और उनके भवनों की ( संख्या ) बहत्तर लाख (है)। 24. उन वेलम्ब और प्रभंजन नामक दोनों वायुकुमार-इन्द्रों के श्रेष्ठ भवनों की ( संख्या ) छियानबे लाख ( हैं और वे भी आकार-प्रकार में) विस्तीर्ण (हैं)। 25-26-27. इस प्रकार असुरों के चौसठ ( लाख ), नागकुमारों के चौरासी ( लाख ), सुवर्ण कुमारों के बहत्तर ( लाख ), वायुकुमारों के छियानबे ( लाख ), द्वीपकुमार, दिशाकुमार, उदधिकुमार, विद्युत्कुमार स्तनितकुमार और अग्नि (कुमार) ( इन ) छहों युगलों के (प्रत्येक के ) छिहत्तर-छिहत्तर लाख ( भवन हैं ) / हे लीला में स्थित सुन्दरी ! अब इन ( युगलों ) की स्थिति-विशेष को क्रमपूर्वक सुनो। ... [ भवनपति इन्द्रों की स्थिति और आयु] 28. हे सुन्दरी ! चमरेन्द्र की उत्कृष्ट आयु-स्थिति ( एक ) सागरोपम कही गयो (है) / यही ( आयु-स्थिति ) बलि ( और ) वैरोचन इन्द्र को भी समझी जानी चाहिए। 29. चमरेन्द्र को छोड़कर, शेष जो दक्षिण दिशा के इन्द्र बताये गये (हैं), उनकी उत्कृष्ट आयु-स्थिति डेढ़ पल्योपम (है)। ____30. बलि को छोड़कर शेष जो उत्तर दिशा में (स्थित ) इन्द्र कहे गये हैं, उनकी आयु-स्थिति कुछ कम दो पल्योपम (है)। .31. यह सब आयु-स्थिति का विवरण (है), अब तुम उत्तम भवनवासो देवों के सुन्दर नगरों के माहात्म्य को भी सुनो। [भवनपति इन्द्रों के स्थान, भवन एवं आकृति ] 32. सम्पूर्ण रत्नप्रभा ( पृथ्वी ) ग्यारह हजार योजन (है), ( उसमें ) एक हजार योजन उपरान्त भवनपतियों के नगर बने हुए हैं।