________________ 17 देवेन्द्रस्तव __58. अमितगति के लिए ( कहा गया है कि वह ) सम्पूर्ण जम्बूद्वीप को पैर की एड़ी से कंपा सकता है / पुनः ( यही ) अतिशय अन्य ( अर्थात् अमितवाहन में भी जानना चाहिए ) / 59. वेलम्ब भी एक वायु के गुंजन के द्वारा जम्बूद्वीप को भर सकता है / उसके समान ही अतिशय प्रभञ्जन में जानना चाहिए / 60. हे सुंदरी ! घोष एक मेघ गर्जन के शब्द के द्वारा जम्बूद्वीप में सबको बहरा कर सकता है। पुनः यही अतिशय अन्य ( अर्थात् महाघोष में भी जानना चाहिए ) / 61. हरि एक विद्युत (प्रकाश ) के द्वारा जम्बूद्वीप को प्रकाशित कर सकता है। उसके समान ही अतिशय हरिस्सह में भी जानना चाहिए / 62. अग्निशिख एक अग्नि की ज्वाला के द्वारा जम्बूद्वीप को जला सकता है / उसके समान ही अतिशय माणवक में भी जानना चाहिए / 63. हे सुंदरी ! तिर्यक् लोक में असंख्यात द्वीप और समुद्र हैं / इनमें से कोई भी एक ( इन्द्र ) स्वयं के रूपों के द्वारा ( इन-द्वीप समुद्रों को ) व्याप्त कर सकता है। 64. कोई भी समर्थ इन्द्र जम्बूद्वीप को बायें हाथ से छत्र की तरह धारण कर सकता है और ( ऐसे ही ) मंदराचल पर्वत को भी बिना परिश्रम से ग्रहण करने में ( समर्थ होता है)। 65. कोई एक शक्तिशाली इन्द्र जम्बूद्वीप को छाता करके और मंदार पर्वत को उसका दण्ड ( बना सकता है ); यह उन ( सब इन्द्रों) का बल विशेष है। 66. संक्षेप से यह भवनपतियों के भवन की स्थिति कही गयी है / (अब ) यथाक्रम से वाणव्यंतरों के भवनों की स्थिति सूनों। [वाणव्यंतरों के आठ भेद] 67. पिशाच, भूत, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किंपुरुष, महोरग-गंधर्व और (ये) वाणव्यंतर (देवों के) आठ प्रकार ( हैं ) / 2 .