________________ देवेन्द्रस्तव 42. उत्तर दिशा की ओर ( असुरकुमारों के ) तीस लाख, ( नागकुमारों के ) चालीस लाख, ( सुपर्णकुमारों के ) चौंतीस लाख, (वायुकुमारों के) छियालीस लाख, (और द्वीप, उदधि, विद्युत, स्तनित एवं अग्नि-इन पांच कुमारों के ) (प्रत्येक के ) छत्तीस लाख भवन होते हैं। 43. सभी भवनपति एवं वैमानिक इन्द्रों की तीन परिषदें ( होती हैं ), इन सभी के प्रायस्त्रिशक, लोकपाल एवं सामानिक ( देव होते हैं / ( सामानिक देवों से ) चार गुणा अंगरक्षक ( देव ) होते हैं। 44. (दक्षिण दिशा के) भवनपतियों के चौसठ हजार उत्तर दिशा के भवनपतियों के ) साठ हजार, वाणव्यंतरों के छः हजार और ज्योतिषी इन्द्रों के चार हजार सामानिक ( देव कहे गये हैं ) / 45. इस प्रकार चमरेन्द्र एवं बलि की पांच अग्रमहिषियाँ (पटरानियाँ) जाननी चाहिए। शेष भवनपतियों की छः अग्रमहिषियाँ (पटरानियाँ ) होती हैं। [भवनपति इन्द्रों के आवास ] 46. इसी प्रकार जम्बूद्वीप में दो, मनुष्योत्तर पर्वत में चार, अरुण समुद्र में छः और अरुणद्वीप में आठ ( भवनपति इन्द्रों के आवास हैं ) / 47. जिस नाम के समुद्र या द्वीप में जिनके आवास ( होते हैं ), उसी नाम के समुद्र या द्वीप में उनकी उत्पत्ति होती है / ___ 48. असुर, नाग एवं उदधिकुमारों के आवास श्रेष्ठ अरुण समुद्र में ( होते हैं ) और उन्हीं में उनकी उत्पत्ति होती ( है ) /