________________ ( xxix ) चन्द्र और सूर्य के विषय में इसमें विस्तार से चर्चा पायी जाती है। उनको गति के बारे में कहा गया है कि सूर्य चन्द्रमा से, ग्रह सूर्य से, नक्षत्र ग्रहों से और तारे नक्षत्रों से तेज गति करने वाले होते हैं ( गाथा 94 से 96) यहीं पर शतभिषज, भरणी, आर्द्रा, आश्लेषा, स्वाति और ज्येष्ठा ये छः नक्षत्र कहे गये हैं, जो पन्द्रह मुहर्त संयोग वाले कहे गये हैं। तीन उत्तरानक्षत्र और पुर्नवसु, रोहिणी और विशाखा-ये छः नक्षत्र चन्द्रमा के साथ पैतालिस मुहर्त का संयोग करते हैं। इसी प्रकार अन्य नक्षत्रों के चन्द्र-सूर्य संयोगों का उल्लेख हुआ है ( गाथा 97 से 107 ) / . सूर्य, चन्द्र आदि ज्योतिषिक देवों की संख्या को निम्न सारिणी से आसानी से समझा जा सकता है ( गाथा 108 से 129) चन्द्र सूर्य नक्षत्र ग्रह तारा ( क्रोडा कोडी में) जम्बूद्वीप - 2 लवणसमुद्र 4 धातकीखण्ड 12 कालोदधि समुद्र 42 पुष्कर द्वीप 144 अर्द्धपुष्कर द्वीप 72 मनुष्यलोक 132 4 12 42 144 72 112 56 176 112 352 336 1056 1176 3696 . 4022 12672 / / 2016 6336 3696 11616 133950 267900 803700 2812950 9644400 4822200 8840700 - इसके बाद ज्योतिषिकों के पिटक, पंक्तियाँ, मण्डल, उनका ताप क्षेत्र, उनकी गति आदि का वर्णन किया गया है। तत्पश्चात् बताया गया है कि चन्द्रमा की हानि और वृद्धि किस प्रकार होती है। यहां कहा गया है कि शुक्ल पक्ष के पन्द्रह दिनों में चन्द्रमा का बांसठवां-बासठवां भाग राहु से अनावृत होकर -प्रतिदिन बढ़ता है और कृष्णपक्ष के उतने ही समय में राहु से अनावृत्त होकर घटता जाता है, इस प्रकार चन्द्रमा वृद्धि को प्राप्त होता है और इसी प्रकार चन्द्रमा का ह्रास होता है।