________________ ( lxxi ) इसी प्रकार हिन्दु, ईसाई और इस्लाम धर्मों में भी देवताओं और स्वर्ग की अवधारणाएं की गयी हैं, फिर भी विस्तार-भय से इन सबकी चर्चा में जाना यहाँ संभव नहीं है / हम यहाँ केवल इतना ही कहना चाहेंगे कि जैन परम्परा ने अन्य धर्म परम्पराओं के समान ही देवों की अवधारणा पर विस्तृत विवेचन किया है। फिर भी हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि जैन परम्परा के अनुसार देवयोनि को प्राप्त करना जीवन का साध्य नहीं है। जीवन का साध्य तो निर्वाण की प्राप्ति है। यद्यपि देव योनि को श्रेष्ठ माना गया है किन्तु जैनों की अवधारणा यह है कि निर्वाण की प्राप्ति देव योनि से न होकर मनुष्य-योनि से होती है। अतः मनुष्य ही सर्वश्रेष्ठ प्राणी है और वह अपनी साधना के द्वारा उस अर्हत् अवस्था को प्राप्त कर सकता है, जिसकी देवता भी वन्दना करते हैं। 24 नवम्बर, 1988 . प्रो० सागरमल जैन डॉ० सुभाष कोठारो