Book Title: Dasveyaliya Uttarjzhayanaim Avassay suttam
Author(s): Shayyambhavsuri, Pratyekbuddha, Ganadhar, Punyavijay, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 426
________________ ॥ णमो त्थु णं समणस्स भगवओ महइमहावीरवद्धमाणसामिस्स ॥ आवस्सयसुत्तं पढमं सामाइयऽज्झयणं [सु. १. पंचनमोक्कारमंगलसुत्तं] १. णमो अरहंताणं । णमो सिद्धाणं। णमो आयरियाणं। णमो उवज्झायाणं। णमो लोऎ सव्वसाहूणं ॥१॥ [सु. २. सामाइयसुत्तं] २. करेमि भंते ! सामाइयं, सव्वं सावजं जोगं पञ्चक्खामि जावज्जीवाए, १० तिविहं तिविहेणं, मणेणं वायाए काएणं, न करेमि न कारवेमि करेंतं पि अन्नं न समणुजाणामि, तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गैरहामि अप्पाणं वोसिरामि॥१॥ [॥ पढमं सामाइयऽज्झयणं समत्तं ॥१॥] १. यद्यपि सामायिकाध्ययनादेवाऽऽवश्यकसूत्रस्य प्रारम्भोऽस्ति तथापि आवश्यकसूत्रनियुक्तिचूर्णिहरिभद्रीयवृत्ति-मलयगिरीयवृत्त्यनुसारेणात्र पञ्चनमस्कारमङ्गलसूत्रं मूलसूत्रपाठत्वेन स्वीकृतमस्ति । आवश्यकसूत्रचूर्णि-हरिभद्रीयवृत्ति-मलयगिरीयवृत्तिनिर्देशः क्रमेणेत्थम्- “सुत्ते य अणुगते सुत्तालावगनिप्फन्नो निक्खेवो, सुत्तफासियनिज्जुत्ती य भवति, तम्हा सुत्तं अणुगंतव्वं । तं च पंचनमोकारपुव्वगं भणति पुव्वगा, इति सो चेव ताव भन्नइ" आवश्यकसूत्रचूर्णिः पृ० ५०१-२ ऋ० के० । "तत्र सूत्रं सूत्रानुगमे सत्युच्चारणीयम् । तच्च नमस्कारपूर्वकम् , तस्याशेषश्रुतस्कन्धान्तर्गतत्वात् । अतोऽसावेव सूत्रादौ व्याख्येयः, सर्वसूत्रादित्वात् , सर्वसम्मतसूत्रादिवत् । सूत्रादित्वं चास्य सूत्रादौ व्याख्यायमानत्वात् , नियुक्तिकृतोपन्यस्तत्वात्" आवश्यकसूत्रहरिभद्रीयवृत्तिः पत्र ३७६-२, आगमोदय० । “सूत्रानुगमे सूत्रमुच्चारणीयम् । तच्च पञ्चनमस्कारपूर्वकम् , तस्याशेषश्रुतस्कन्धान्तर्गतत्वात् , सूत्रादिता चास्य नियुक्तिकृता सूत्रादौ व्याख्यायमानत्वादवसेया" आवश्यकसूत्रमलयगिरीयवृत्तिः पत्र ४८५-१॥ २. 'लोए' इति पदं चूर्णौ नास्ति, तथा च चूर्णि:-" णमो सव्वसाहूणं ति संसारत्था गहिया" पृ० ५८७। हरिभद्रीय-मलयगिरीयवृत्त्योरपि 'लोए' पदस्थ व्याख्या नोपलभ्यते ॥ ३. मणसा वचसा कायसा, न क° चू०, अत्रैव चूर्णिव्याख्याने 'कायसा' स्थाने 'कायेण' इत्यपि वर्तते ॥ ४. गरिहा आ० मु०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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