Book Title: Dasveyaliya Uttarjzhayanaim Avassay suttam
Author(s): Shayyambhavsuri, Pratyekbuddha, Ganadhar, Punyavijay, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
View full book text
________________
उत्तरज्झयणसुत्तस्स सुत्ताणुकमो
सुत्तको
४४३
३९६
५८५
४१५
सच्चा तहेव मोसा य... मणगुत्ती (च० च०) ९४५
वइगुत्ती
९४७
सुत्तादि
सकम्मसेसेण पुराकएणं
सक्खं खुदीसइ तवो विसेसो
सगरो वि सागरं
सच्च-सोय पगडा
ور
""
" ""
* सज्झाएणं भंते ! सकुमारो मणुस्सेंदो सत्तरस सागराई
सतरस सागरा ऊ
सत्तूय इति के वृत्ते ? सत्तेव सहस्साई
सत्तेव सागरा ऊ सत्थग्गणं विसभक्खणं
सत्थं जहा परमतिक्खं
स देव-गंधव्त्र-मनुस्सइए सद्दस्स सोयं गहणं वयंति सधयार उज्जओ
सद्दाणुगासाणुगए य जीवे
सद्दाणुरत्तस्स रस्स एवं
सद्दाणुवाए ण परिग्गहेण
सद्दा विविहा भवंति लोए
स अतित्य परिग्गहम्मि
सद्दे रूवे य गंधे य
सद्दे विरत्तो मणुओ विसोगो
सद्देसु जो गेहिमुवेइ तिव्वं
सद्धं नगरं किच्चा
नानाणो गए महेसी
सन्नानाणो गए महेसी
सन्नायपिंड जेमेइ
सन्निहिं च न कुज्ज
पुजत्थे सुविणीयसंसए
स पुव्वमेवं न लभेज्ज पच्छा * सब्भावपचक्खाणं भंते !
समए वि संतई पप्प
समणं संजयं दंतं समणामु एगे वदमाणा
Jain Education International
"
११२०
५८७
१६८०
१६१६
८७३
१५४०
१६१४
१७१९
७२३
૪૮
१२७०
१०७६
१२७४
१२७९
१२७५
५०८
१२७६
५२२
१२८१
१२७१
२४८
७८६ पा०
७८६
५४८
१७६
४७
१२५
११४३
१४६१
७७
२१५
सुत्तादि
समणो अहं संजओ बंभयारी
समता सव्वभूएस
समयाए समणो होइ समरेषु अगारेसु
समं च संथवं श्री हिं
समागया बहू तत्थ
समावण्णा ण संसारे
समिईहिं मज्झं सुसमाहियस्स
सक्खि पंडिए तम्हा
समिती मज्झं सुसमाहियस्स
समुद्दगंभीरसमा दुरासया
समुयाणं उंछ मेसेज्जा
समुट्ठियं तहिं संतं
सम्मत्तं चैव मिच्छतं
सम्ममाणे पाणाणि
सम्म सत्ता
सम्मं धम्मं वियाणित्ता
सम्मुच्छिमाण सेव
सयणासण ठाणे वा
सयणा सण पाण-भोयणं
सयं गेहूं परिच
सरागे वीयरागे वा
* सरीरपञ्चक्खाणेण भंते !
सरमाहुनाव
सलं कामा विसं कामा
स बीयरागो कयसव्वकिचो
* सव्वगुणसंपन्नयाए णं भंते !
सव्वजीवाण कम्मं तु
सव्वसिद्धगा चेव
सव्वभवे असाया
सव्वं गंथं कलहं च
सव्वं जगं जइ तुहं
सव्वं तओ जाणइ पासई य
सव्वं विलवियं गीयं
सव्वं सुचिणं सफलं
सव्वे ते विदिया मज्झ
सव्वेसिं चेव कम्माणं
For Private & Personal Use Only
४६७
सुत्तको
३६८
६३०
९८२
२६
५१५
८५५
९८
३७६
१६३
३७६ पा०
३५८
१४४७
९५८
१३५४
५३५
१७१०
४९१
१६५०
१२१२
५०५
५४७
१४०२
१४१०
९०९
२८१
१३४२
११४६
१३६३
१६६८
६७९
२१२
૪૮૦
१३४३
४२२
४१६
५७७
१३६२
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759