Book Title: Dasveyaliya Uttarjzhayanaim Avassay suttam
Author(s): Shayyambhavsuri, Pratyekbuddha, Ganadhar, Punyavijay, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 661
________________ aadhipati ८९२ ८१७ पहु ४८, ८६ पंकजल पंकभूय पंखा पंचमं परिसिह सद्दो सुत्तंकाइ । सहो सुत्तंकाइ * पसाह * पहाव -पसाह पृ० १४४ टि० २१ --पहावई १०५३ - पसाहि ४१९ पहावंत=प्रधावत् -पसाहेत्ता ५९२ पहीण ४७०-७१, ११०० पसाहिय पहीणसंथव ७८४ पसिढिल १०२२ ६२७, १४५१ पसिण-प्रश्न पहूय =प्रभूत पृ० १३७ टि. ७ * पसी पंक -पसीयंति -पसीयंती पृ० ९० टि० १ -पसीयंतु ९२५ पंकाम= पङ्काभ-नैरयिकमेद ५१२ [१], १२०४ ४७१ पसुत्त पृ० १९३ टि. १ पंच ४७, २६४, ३३०, ४०१, ६१५, पसुभि = पशुभिः पृ० १२४ टि० २० ६९३,७७५, ८११,८७२,९२६, पसुभिस्सह - पशुभिः सह २७७ ९४४, ९५१, १००२, १३९१ पसुबद्ध पृ० २२५ टि० २२ पंचकुसील पसुबंध पंचम ८५३, ११८७ पसुसंसत्त पृ० १५९ टि० १२ पंचम [गेवेज] १६९० पसूय ४४३, ८८७ पंचमहव्वय ९२३ *पस्स दृश्यता 'पास' पंचमा ९९८, १३५० - पस्स १७३, २०६-७, पृ० १०२ टि० ८ पंचमा [नरयपुढवी] १६१६ पस्स = पार्श्वजिन पृ० ११० टि० १५ पंचमी पृ० २२८ टि. ५ पस्सं-पश्यन् , टि०५ पंचलक्खणय पह = पथ १६३, ३२१-२२, ७५४ पंचविह ५१२, १०६८-६९, ११७३, *पहण १३४९, १३६०, १९५७ -पहणे ५९९ पंचसमिय ११७९ पहय%प्रहत ३९५ पंचसिक्खिय पहव ३५५ पंचहा ९३३, ११९०, १२१०, १४६७पहसिय ७१३ ६८, १४७०, १५३७, १५७०, * पहा=प्र+हा १६२४, १६६०, १६६८ -पहाय ११८, १२६, ४७६, ४७८, पंचहस्सक्खरुच्चारणद्धा ११७४ ४८१,४८२ पंचाल ४१९, ५९६ पहा १०७६ पंचालराया ४३२, ४४० पहाण ७०२ पंचिंदिय १६०७ पहाणमग्ग ४७२ पंचिंदियकाय पहाणवं =प्रधानवान् - संयमवान् ७८४ पंचिंदियता पहाणाय=प्रहाणाऽऽय १०३ । पंचिंदियतिरिक्त १६२२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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