Book Title: Dasveyaliya Uttarjzhayanaim Avassay suttam
Author(s): Shayyambhavsuri, Pratyekbuddha, Ganadhar, Punyavijay, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 679
________________ महापालि पंचमं परिसिटुं सहो सुत्तंकाइ | सहो सुत्तंकाइ महापभाव मही ५९२, ६०२, १०६४ महापह=महापथ २६, १४३ महु = मधु १३८४, पृ० १८४ टि० ११ महापाण ,, ,, -प्रासादप्रकार ४१९ महुर २८३, १४७० महाभवोह ७८७ पृ. ३०.टि.१ महाभाग ३९३, ७५९, ८५७, १५१५ | महुरय[रस] १४८५ महाम? =महार्थ पृ० २२४ टि० ११ महेसि १२६, ३८६, ४४१, ७५८,७८३, महामुणि ६०, ३६७, ५७३, ७५६, ७८६, ९०९, ९१९, ११०० ८४८, ८५९, ८६५, ९५४, महोघ पृ० १०४ टि०१, पृ० २१४ टि०१६ - ९६१, ९६५, ९८६, १४४८ महोदर १८० महामेह ८८७ महोदहि महायस ४१०,७८५,७९१, ८०७, ८३८, महोरग १६५९ ८४२, ८४५, ८५४, ९२२, ९५३ महोह-महाप्रवाह १३०,९०६ महारण मंगल ७९६, १०३७, ११०२, १११६ महारंभपरिग्गह मंडण महाराय ४८९, ७१२, ७२०, ७२२, मंडलमण्डल-परिसर ८४०, ८४४ ७२८ तः ७३०,७३३ " , - चतुरन्तसंसार महारिसि १२१६ तः १२३३ महालय = अतिमहत् ३२२, ४३२, ९०२ मंडलिया [वाय] १५७० महाषण मंडव ५५५ महाविमाण १६९६ मंडिकुच्छि महावीर ४९, ५०, १३३, ७६४, ११०१, मंत ५०२, ५८१, ७२५ ११७६ मंताजोग=मन्त्राऽऽयोग १७१६ महासागर १२५२ मथु २२० महासिणाण मंद १२८, २१५, ३९८ महासुक्क= महाशुक्र-देव, देवलोक ११०, ५५७ १६६३, १६८० मंदर ३५६, ६४६ महासुय=महाश्रुत मंदाणुभाव ११२४ महिड्ढिय ४८, १५४, ३४९,४१३, ४१७, मंदिय = मन्द २१३ ४२६, ५८६ तः ५८८, ५९१, मंदिर २४० ६१३, ७८८, ७९०, ७९५ मंस ६१, १३८, १८४, ६७४ महिड्ढीय . . ४१०, ४३४ मंसट्ठा = मांसार्थम् महिय मा १०, १२, १६, ११७, २९१ तः ३२६, महिया ३८२,४३२, ४७४,७१८,८३०,९९० महिला= मिथिला पृ० ११९ टि० १२- माइ-मायिन् १८३,५४०, १०५३, १७१७ . १४-१८, पृ० १२० टि. १२ माइवाहय = द्वीन्द्रियजीवमेद १५८० ६६२, १३१० । माइन्नमात्रज्ञ पृ० ९३ टि०३ मंदपुन्न महिस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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