Book Title: Dasveyaliya Uttarjzhayanaim Avassay suttam
Author(s): Shayyambhavsuri, Pratyekbuddha, Ganadhar, Punyavijay, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 699
________________ ६०६ पंचमं परिसिटुं सद्दो सुत्तंकाइ विसप्प १४४३ विसफलोवम विसभक्खण ८८२, १७१९ विसभक्खि ૮૮૧ विसम १४३, १४८, ३२३ विसय = विषय ६१४,७४७, ११०४, १२५५ विसयगिद्ध १८४ विसारय ७२५, १०४८ विसारंत= विस्तारयत् पृ० २०४ टि. १७ विसारित= " विसारेंत= " विसाल ४०८ विसालकित्ति ४४४ विसालिस * विसीद, विसीय -विसीदति पृ० १०३ टि. १० -विसीय -विसीयई १२५ विसील ३३२ विसुद्ध ४०५-६, ११०३-१११४, ११७३ विसुद्धपन्न = विशुद्धप्रज्ञ २२८ विसुद्धसद्धम्म ११५ विसुद्धसम्मत्त विसूइया ३१७ विसेस १५९, ३९६, ६०२, ८४९, ८६०, ८६६, ११९९, १३३७ विसोग १२६८, १२८१, १२९४, १३०७, १३२०, १३३३ विसोज्स *विसोह -विसोहइ पृ० २४७ टि० १३ -विसोहए -विसोहयति पृ. २४७ टि. १३ -विसोहित्ता ११५९-६० -विसोहिया ३२२, पृ० २१९ टि० ११ -विसोहेइ ११०६, १११४, १११८, ११२२, | ११५४, ११५८ तः ११६० । सुत्तंकाइ -- विसोहेज विसोहण १०२० विसोहि ११०३, ११११, १११८-१९, ११५२ विस्संभिय = विश्वमृत् विस्सुय ६०६, ७०२, ८४१ विह = विध ११७३, १२०९, १२२३, १३४९, १३५६, १३५८ तः १३६०, १३९०, १४५६, १५००, १५२०, १५२३-२४, १५२९, १५३८, १५५२, १५५८-५९, १५६९, १५७९, १५८८,१६०८, १६२२-२३, १६३१, १६३३, १६४७ तः १६४९, १६५७, १६६१ १६६४, १७०० विहग * विहड -विहडइ ३१७ * विहण्ण -विहण्णसि -विहण्णेजा * विहन्न -विहन्नइ पृ० ९३ टि० १०, पृ० ९५ टि० १३ -विहन्नई -विहन्निजा -विहन्नेजा ४९, ५०, ७२ *विहम्म -विहम्मई पृ० ९५ टि. १३ -विहम्मसि पृ० १२५ टि०६ -विहम्मेजा पृ० ९४ टि० ३०, पृ० ९५ टि० १२ विहम्ममाण = विघ्नत् , विध्यमान १०५० * विहर -विहरइ ७६३, १०६४, १११३-१४, ११३२, ११३५, ११६२ १११४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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