Book Title: Dasveyaliya Uttarjzhayanaim Avassay suttam
Author(s): Shayyambhavsuri, Pratyekbuddha, Ganadhar, Punyavijay, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 690
________________ उत्तरज्झयणसुत्तंतग्गयाणं सद्दाणमणुकमो ५९७ सद्दो सुत्तंकाइ वत्थ २७४ सद्दो सुत्तंकाइ वत्तव्व ११६८, ११७२ वत्ति = वृत्ति १३९७,पृ० २९४ टि० १६-१८ वत्तिय = वर्तिक - वर्तिन् ५१२ [१०] ६२, १०१८ - १९, ११९८ वत्थु = वास्तु ११३, ६२१ वत्थुविजा- वास्तुविद्या ५०१ *वद दृश्यतां 'वय' - वदंति १२४१ -वदे ८२७, पृ. ८७ टि. ८ वदमाण २१५ वद्धण ४८८, ११०७ वद्धमाण ८१३, ८४१, ८४८, ८५९, ८६५ वद्धमाणगिह २५२ वध ६३७ वन्न १७२, ६६०, ६७४ *वम - वमई ३३४ -वमित्ता वमण ५०२ वमंत ३८४,३८८ वम्मधारि १२४ * वय = व्र ४८९, ७५४, १०५२ - वते पृ० १५४ टि० ११,पृ० १९५टि०९ - वयइ २८२ -वयंति पृ० १२५ टि० ११ - वये पृ० १९५ टि. ९ * वय = वद् -वए १४, २४, ७१८, १२११ - वएज ४१ - वयइ - वयई - वयंति ३९७, ३९९, ४४९, ४६०, १२४०-४१, १२५६-५७, १२६९-७०, १२८२-८३, १२९५-९६, १३०८-९, १३२१-२२ वज्झ ७७१ वज्झग वज्झमंडण *वट्ट - वट्ट ५३१, ११२१ वट्टमाण ३३३, ११२१, ११५२-५३ वट्ट [संठाण] १४७३, १४९५ वहत ८९६, १४४५ *वड्ढ -वड्डइ १२६४. १२७७, १२९०, १३०३, १३१६, १३२९ -वड्ढई पृ० २२९ टि. १७ - वड्ढए - वड्ढावइत्ता वड्ढइ वड्ढण पृ० १५४ टि. ४ वड्ढमाण पृ० २०३ टि० २१ वण% वन ५९९, ६६५, ७३९, ८५१, १२४५ वणचारि १६५७ वणप्फइ १५५४, पृ० ३०७ टि०४ वणस्सइ १०२५, १५२१, १५४३ वणस्सइकाय वणिय १९२, २१४, ४७१ वण्ण २०५, ४३२, ७०९, १०७६, ११९९, १२५४, १३७४ तः १३७९, १४६७-६८, १४७४ तः १४९८, १५३५, १५४३, १५५७, १५६८, १५७७, १५८७, १५९६, १६०६,१६२१,१६३०, १६३९, १६४६, १६५५, १६९९ वण्णवर्णवान् ११४ वण्णसंजलण ११०६ वणिय १४१०, १४१४, १४१७ वण्हि =वृष्णि ८००, ८३० वतिगुत्तया पृ० २४४ टि १ वत्तणालक्खण १०७४ ४८५ - वए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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