Book Title: Dasveyaliya Uttarjzhayanaim Avassay suttam
Author(s): Shayyambhavsuri, Pratyekbuddha, Ganadhar, Punyavijay, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 567
________________ पंचमं परिसि सुकाइ २६५, २६७, २६९, २७१, २७३, २७५, २७८, २८०, ३७४, ७११, ७८४, ९५९, ९६२, ११०२, ११७६, १२३८ अट्ठ = अष्टन् ३०३, ३३१, ९२६, ९२८, ९३५, १०११, १०९५, १११३, ११५१, १३४६, १३४८, १३६८, १५०३ - ४, अट्ठपद-अर्थपद अट्ठम अट्ठम [गेवेज्ज] १५११, १६७३. ३२७ ९२७, ९९८ १६९३ अट्ठविह ११३३, ११७३, १२०१, १३५९ अट्ठवीस अट्ठावीस १६९१ १६४९, १६९२ ७९२ अट्टसहस्स अट्ठहा १४७०-७१, १६५७, १६५९ अट्ठा - अष्टा - मुष्ठि ८११ अट्ठा -अर्थम् - अर्थाय ३३, १२०, ३६८, ४७३, ८०३ अट्ठाए = अर्थाय १३७, ४७४ सो अट्ठारस अट्ठावीस अट्ठावीस अट्ठि=अर्थिन् अट्ठिमिंज = त्रीन्द्रियजीवभेद अट्ठिय-अर्थिक अद्वियप्पा= अस्थितात्मा अट्टुत्तर अड्ढ = आन्य अणइकमणा ६८५, ९६२, १०२७, १०२९ Jain Education International १६८१-८२ पृ० २५७ टि०५ ११७३ ७, २० १५९० ४६, ३७०, ११३५ ८३१ १५०५-६ ६०९ १०२८ अणगार १, ६४, ७८, २२७, २४४, ३२८, ५५४, ५५६ तः ५६०, ५६८-६९, ९५७, ९७९, ९९४, ११०५, ११०८–९, ११४३, ११६३, ११७४ सो अणगारगुण अणगारमंग्ग अणगारसीह अणगारि अणगारिय reafter अणच्चाविय अणच्चासायणसील अणट्ट = अनार्त ७६१ पृ० २२३ टि० २६, पृ० २४४ टि०२८ अणट्ठ अणट्ठाए = अनर्थाय अणण्हयत्त अणत्थ अभिगहि अभिलसमाण अमलसेमाण अणमिसा अणलंकिय trajaमाण अणवज्ज अणवयग्ग अणसण अणसणा सुत्तकाइ १२३१ पृ० २९५ पं० ११ ३१९, पृ० २४४ टि० २८ ७३५, ७३७, ७७३ १०२० ११०६ ६०० ५८० १३७ ११२८ ४५४ १०९० १४३८ पृ० २५० टि० ३० For Private & Personal Use Only ११३५ पृ० १७६ टि० १५ -११९८ ४०१ ६३२ ११२४ ६९७, ११८४ ११८५, ११८८ ११३५ पृ० २५० टि० २८ " अणस्साएमाण अणस्सा माण अणस्सायमाण अनंत २९९, १०७२, ११७३, १६३८, १६४५ अनंतकाल १४६६, १५३४, १५४२, १५५५, १५६७, १५७६, १५८६, १५९५, १६०५, १६२०, १६२९, १६५४; १६९८ -. १३६२ अणंतग = अनन्तक- अनन्त अनंतगुण ६५२-५३, १३८० तः १३८३, १३८५ तः १३८९ در www.jainelibrary.org

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