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चित्त-समाधि : जैन योग
डन की साधना हो जाती है। टिप्पण---५७
देखिये, टिप्पण क्रमाङ्क---५२ टिप्पण-५८
देखिये, टिप्पण क्रमाङ्क-५२ टिप्पण--५६
द्रह चार प्रकार के होते हैं१. जिसमें से स्रोत निकलता है, किन्तु मिलता नहीं । २. जिसमें स्रोत मिलता है, निकलता नहीं। ३. जिसमें से स्रोत मिलता भी है और निकलता भी है। ४. जिसमें से न कोई स्रोत निकलता है और न कोई मिलता है।
द्रह के रूपक द्वारा प्राचार्य का वर्णन किया गया है। प्राचार्य प्राचार्योचित गुणों से प्रतिपूर्ण, स्वभाव की भूमिका में स्थित, उपशांत मोहवाला, सब जीवों का संरक्षण करता हुआ, श्रुतज्ञान रूपी स्रोत के मध्य में स्थित होता है। श्रुत को लेता भी है और देता भी है। टिप्पण-६०
दीव शब्द की "द्वीप" और "दीप" इन दो रूपों में व्याख्या की जा सकती है। दीप प्रकाश देता है और द्वीप आश्वास । ये दोनों दो-दो प्रकार के होते हैं ।
१. संदीन-कभी जल से प्लावित हो जाने वाला और कभी पुनः खाली होने वाला द्वीप । अथवा बुझ जाने वाला दीप ।
२. प्रसंदीन-जल से प्लावित नहीं होने वाला द्वीप। अथवा सूर्य, चन्द्र, रत्न आदि का स्थायी प्रकाश ।
धर्म के क्षेत्र में सम्यक्त्व आश्वास-द्वीप है। प्रतिपाती सम्यक्त्व संदीन द्वीप और अप्रतिपाती सम्यक्त्व असंदीन द्वीप होता है। ज्ञान प्रकाश-दीप है। श्रुतज्ञान संदीन दीप और आत्म-ज्ञान असंदीन दीप है।
___ धर्म का संघान करने वाले मुनि की संयम-रति असंदीन द्वीप या दीप जैसी होती है। टिप्पण–६१
देखिये, टिप्पण क्रमाङ्क-५२ टिप्पण-६२
बाधाओं को कैसे सहन करना चाहिए, उनके सहन करने या न करने से क्या
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