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चित्त-समाधि : जैन योग
. इन तीनों सूत्रों (५१-५३) में विशेष चर्चनीय पद 'परलोगधम्मस्स पाराहए' और 'करणसत्ति' हैं। परलोक-धर्म की आराधना का अर्थ यह है कि भाव-सत्य से आगामी जन्म में भी धर्म की प्राप्ति सुलभ होती है ।
करण-शक्ति का अर्थ है-वैसा कार्य करने का सामर्थ्य, जिसका पहले कभी अध्यवसाय या प्रयत्न भी न किया गया हो । करण-सत्यता और करण-शक्ति के अभाव में ही कथनी और करनी में अन्तर होता है। उन दोनों के विकसित होने पर मनुष्य 'यथावादी तथाकारी' बन जाता है। ४२. सूत्र ५४-५६
इन तीन सूत्रों में गुप्ति के परिणामों का निरूपण है । गुप्तियां तीन हैं—मन-गुप्ति, वचन-गुप्ति और काय-गुप्ति ।
____ जो समित होता है, वह नियमतः गुप्त होता है और जो गुप्त होता है वह समित हो भी सकता है और नहीं भी। अकुशल मन का निरोध करने वाला मनोगुप्त ही होता है और कुशल मन की प्रवृत्ति करने वाला मनोगुप्त भी होता है और समित भी। इसी प्रकार अकुशल वचन और काया का निरोध करने वाला वचो-गुप्त और काय-गुप्त ही होता है तथा कुशल वचन और काया की प्रवृत्ति करने वाला वचन-गुप्त और काय-गुप्त भी होता है और समित भी।
अकुशल मन का निरोध और कुशल मन की प्रवृत्ति का परिणाम एकाग्रता है । एकाग्रता में चित्त का निरोध नहीं होता, किन्तु उसकी प्रवृत्ति अनेक पालम्बनों से हटकर एक पालम्बन पर टिक जाती है । जब एकाग्रता का अभ्यास पूर्ण परिपक्व हो जाता है, तब चित्त का निरोध होता है।
अकुशल वचन के निरोध और कुशल वचन की प्रवृत्ति का परिणाम निर्विकारविकथा से मुक्त होना है। 'निम्वियार' का ३ र्थ यदि निर्विचार किया जाए तो वचनगुप्ति का अर्थ मौन करना चहिये । बोलने की इच्छा से विचार उत्तेजित होते हैं और मौन से विचार शून्यता प्राप्त होती है और आत्म-लीनता बढ़ती है ।
___ काय-गुप्ति का परिणाम संवर बतलाया गया है। यहां प्रकरण के अनुसार संवर का अर्थ 'अकुशल कायिक प्रवृत्ति से समुत्पन्न आस्रव का निरोध' होना चाहिये। जब अकुशल प्रास्रव का संवरण होता है तब हिंसा आदि पापास्रव निरुद्ध होने लग जाते हैं। प्रवृत्ति का मुख्य केन्द्र काया है। इसलिये आस्रव और संवर का भी उसके साथ गहरा संबंध है।
जिनभद्रगणि के अनुसार मुख्य योग एक ही है। वह है काय-योग । वचन योग और मनोयोग के योग्य-पुद्गलों का ग्रहण काय-योग से ही होता है। उसके स्थिर होने पर सहज ही संवर हो जाता है। काया की चंचलता या प्रास्रवाभिमुखता के बिना वचनव्यापार और मन की चंचलता स्वयं समाप्त हो जाती है ।
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