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● अर्धमासिक-भक्त
६ मासिक-भक्त
१० द्वैमासिक - भक्त
११ त्रैमासिक-भक्त
१२ चतुर्मासिक-भक्त
१३ पंचमासिक - भक्त
१४ छह मासिक-भक्त
इत्वरिक तप कम से कम एक दिन और अधिक से अधिक ६ मास का होता है । प्रस्तुत प्रकरण में इत्वरिक-तप छह प्रकार का बतलाया गया है - १. श्रेणि तप, २. प्रतर तप, ३. घन तप, ४. वर्ग तप, ५. वर्ग-वर्ग तप और ६. प्रकीर्ण तप ।
क्रम प्रकार
श्रेणि तप - उपवास से लेकर छह मास तक क्रमपूर्वक जो तप किया जाता है, उसे श्रेणि-तप कहा जाता है । इसकी अनेक अवान्तर श्रेणियां होती हैं । जैसे—उपवास, बेला—यह दो पदों का श्रेणि तप है । उपवास, बेला, तेला, चोला - यह चार पदों का श्रेणि तप है ।
१
२
३
- १५ दिन का उपवास ।
- १ मास का उपवास ।
-२ मास का उपवास ।
-३ मास का उपवास ।
-४ मास का उपवास ।
-- ५ मास का उपवास ।
-६ मास का उपवास ।
२. प्रतर तप - एक श्रेणि-तप को जितने क्रम प्रकारों से किया जा सकता है, उन सब क्रम प्रकारों को मिलाने से प्रतर-तप होता है । उदाहरणस्वरूप उपवास, बेला, तेला मौर चौला — इन चार पदों की श्रेणि लें । इसके निम्नलिखित चार क्रम प्रकार बनते हैं—
-
१
उपवास
बेला
तेला
चौला
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चित्त-समाधि : जैन योग
२
बेला
तेला
चौला
उपवास
३
तेला
चौला
उपवास
बेला
यह प्रतर-तप है । इसमें कुल पदों की संख्या १९ हैं । इस तरह यह तप श्रेणि को श्रेणि-पदों से गुणा करने से बनता है ।
चौला
उपवास
बेला
तेला
३. घन तप-- जितने पदों की श्रेणि है, प्रतर को उतने पदों से गुणा करने से घन तप बनता है । यहाँ चार पदों की श्रेणि है । अतः उपर्युक्त प्रतर तप को चार से गुणा करने से अर्थात् उसे चार बार करने से घन तप होता है । घन तप के ६४ पद बनते
हैं ।
४. वर्ग तप — धन को घन से गुणा करने पर वर्ग तप बनता है अर्थात् घन तप को ६४ बार गुणा करने से वर्ग तप बनता है । इसके ६४ x ६४ == ४०६६ पद बनते हैं ।
५. वर्ग- वर्ग तप-वर्ग को वर्ग से गुणा करने पर वर्ग-वर्ग तप बनता है अर्थात्
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