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________________ १५६ ● अर्धमासिक-भक्त ६ मासिक-भक्त १० द्वैमासिक - भक्त ११ त्रैमासिक-भक्त १२ चतुर्मासिक-भक्त १३ पंचमासिक - भक्त १४ छह मासिक-भक्त इत्वरिक तप कम से कम एक दिन और अधिक से अधिक ६ मास का होता है । प्रस्तुत प्रकरण में इत्वरिक-तप छह प्रकार का बतलाया गया है - १. श्रेणि तप, २. प्रतर तप, ३. घन तप, ४. वर्ग तप, ५. वर्ग-वर्ग तप और ६. प्रकीर्ण तप । क्रम प्रकार श्रेणि तप - उपवास से लेकर छह मास तक क्रमपूर्वक जो तप किया जाता है, उसे श्रेणि-तप कहा जाता है । इसकी अनेक अवान्तर श्रेणियां होती हैं । जैसे—उपवास, बेला—यह दो पदों का श्रेणि तप है । उपवास, बेला, तेला, चोला - यह चार पदों का श्रेणि तप है । १ २ ३ - १५ दिन का उपवास । - १ मास का उपवास । -२ मास का उपवास । -३ मास का उपवास । -४ मास का उपवास । -- ५ मास का उपवास । -६ मास का उपवास । २. प्रतर तप - एक श्रेणि-तप को जितने क्रम प्रकारों से किया जा सकता है, उन सब क्रम प्रकारों को मिलाने से प्रतर-तप होता है । उदाहरणस्वरूप उपवास, बेला, तेला मौर चौला — इन चार पदों की श्रेणि लें । इसके निम्नलिखित चार क्रम प्रकार बनते हैं— - १ उपवास बेला तेला चौला Jain Education International चित्त-समाधि : जैन योग २ बेला तेला चौला उपवास ३ तेला चौला उपवास बेला यह प्रतर-तप है । इसमें कुल पदों की संख्या १९ हैं । इस तरह यह तप श्रेणि को श्रेणि-पदों से गुणा करने से बनता है । चौला उपवास बेला तेला ३. घन तप-- जितने पदों की श्रेणि है, प्रतर को उतने पदों से गुणा करने से घन तप बनता है । यहाँ चार पदों की श्रेणि है । अतः उपर्युक्त प्रतर तप को चार से गुणा करने से अर्थात् उसे चार बार करने से घन तप होता है । घन तप के ६४ पद बनते हैं । ४. वर्ग तप — धन को घन से गुणा करने पर वर्ग तप बनता है अर्थात् घन तप को ६४ बार गुणा करने से वर्ग तप बनता है । इसके ६४ x ६४ == ४०६६ पद बनते हैं । ५. वर्ग- वर्ग तप-वर्ग को वर्ग से गुणा करने पर वर्ग-वर्ग तप बनता है अर्थात् For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003671
Book TitleChitta Samadhi Jain Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1986
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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