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शरीर
निद्रा
जे उ बुद्धा महाभागा वीरा सम्मत्तदंसिणो । सुद्धं तेसि परक्कतं अफलं होइ
णिद्दं च भिक्खू न पमाय कुज्जा दिवसतो णणिद्दायति रत्ति पि दोहि निद्रा हि परमं विश्रामणम् ।
सुतं ।
तहा ॥ १।१५।१६
गिट्टितट्ठा व देवा व उत्तरी त्ति मे सुतं च मेतमेगेसि अमणुस्सेसु णो अंतं करेंति दुक्खाणं इहमेगेसि आहितं । आघातं पुण एगेसिं दुल्लभेऽयं समुस्सए ।।११।१५।१७ इतो विद्धसमाणस्स पुणो संबोहि दुल्लभा । दुल्लभाओ तहच्चाओ जे धम्मट्ठ वियागरे ॥।११।१५।१८
१।१४।६
चित्त-समाधि : जैन योग
सव्वसो " ॥ १८२४
टिप्पणियां (सूयगडो)
१. ( सू० १।१५।६ )
तुति पावकम्माणि - वृत्तिकार के अनुसार इसका अर्थ है - जिस मुनि ने अपने आस्रवद्वारों को ढक दिया है, जो विकृष्ट तप करने में संलग्न है, उसके पूर्वसंचित कर्म टूट जाते हैं और जो नए कर्म नहीं करता, उसके संपूर्ण कर्म नष्ट हो जाते हैं ।
२. ( सू० १११५/७ )
कम्मं णाम विजाणतो - चूर्णिकार के अनुसार इसका अर्थ है- जो कर्म और कर्मनिर्जरण के उपायों को जानता है ।
इसका वास्तविक अर्थ है कि जो व्यक्ति
कर्म का बंध नहीं होता ।
३. ( सू० १।१५/७ )
वृत्तिकार ने इसके अनेक अर्थ किए हैं
१. नाम का अर्थ है 'नमन' अर्थात् जो कर्म के नाम-निर्जरण को जानता है । २. जो कर्म और नाम को जानता है अर्थात् जो कर्म के अवान्तर भेदों - प्रकृति स्थिति, अनुभाग और प्रदेश को सम्यग् जानता है ।
३. 'नाम' शब्द का प्रयोग - संभावना के अर्थ में है ।
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कर्म का विज्ञाता या द्रष्टा है, उसके नये
महावीरे - इसका अर्थ है- महावीर्यवान्, महान् पराक्रमशाली - कर्मों को नष्ट
करने में समर्थ है ।
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