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ठाणं
इता ठावइता भवति, तेणामेव तस्स भट्टिस्स सुप्पडियारं भवति ( समणाउसो ! ? ) ।
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३. केति तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अंतिए एगमवि प्ररियं धम्मियं सुवयणं सोच्चा णिसम्म कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववण्णे । तए गं से देवे तं धम्मायरियं दुब्भिवखाओ वा देसाप्रो सुभिक्खं देसं साहरेज्जा, कंतारानो वा णिक्कतारं करेज्जा, दीहकालिएणं वा रोगातंकेणं अभिभूतं समाणं विमोएज्जा, तेणावि तस्स धम्मायरियस्स दुप्पडियारं भवति । ग्रहे णं से तं धम्मायरियं केवलिपण्णत्ताश्रो धम्माम्रो भट्ठ समाणं भुज्जोवि केवलिपण्णत्ते धम्मे आघवइत्ता पण्णवइत्ता परुवइत्ता ठावइता भवति, तेणामेव तस्स घम्मायरियस्स सुप्पडियारं भवति ( समणाउसो ! ? ) । ३/८७
टिप्पण
१. क्रोध की उत्पत्ति के निमित्तों के विषय में वर्तमान मनोविज्ञान की जानकारी जितनी आकर्षक है, उतनी ही ज्ञानवर्धक है । कुछ प्रयोगों का विवरण इस प्रकार हैव्यक्ति जो कुछ भी करता है, वह चेतन अथवा अवचेतन मस्तिष्क के निर्देश पर ही होता है । साधारणतया हम जब भी मस्तिष्क की बात करते हैं, हमारा तात्पर्य चेतन मस्तिष्क से ही होता है, तार्किक बुद्धि से । पर क्रोध और हिंसा के बीज इस चेतन मस्तिष्क से नीचे कहीं और गहरे हुआ करते हैं । वैज्ञानिकों का कहना है कि चेतन मस्तिष्क-सैरेबियन कोरटेक्स तो मस्तिष्क के सबसे ऊपर की परत है, जो मनुष्य के विकास की अभी हाल की घटना है। इसके बहुत नीचे 'आदिम मस्तिष्क' है— हिंसा और क्रोध की जन्मभूमि ।
और वैज्ञानिकों का यह कथन जानवरों पर किये गये अनेकानेक परीक्षणों का परिणाम है । मस्तिष्क के वे विशेष बिन्दु खोजे जा चुके हैं, जहां क्रोध का जन्म होता है । इस दिशा में प्रयोग करने वालों में डाक्टर जोस एम० प्रार० डेलगाडो अग्रणी हैं । उन्होंने अपने परीक्षणों द्वारा दूर शांत बैठे बन्दरों को विद्युतधारा से उनके उन विशेष बिन्दुों को छूकर लड़वाकर दिखला दिया है। सचमुच, यह सब जादू का सा लगता है । कल्पना कीजिये -सामने एक बड़े से पिंजड़े में एक बन्दर बैठा केला खा रहा है और आप बिजली का बटन दबाते हैं—अरे यह क्या, बन्दर तो केला छोड़कर पिंजड़े की सलाखों पर झपट पड़ा है। दांत किटकिटा रहा है। हाँ, हिंसक हो गया है । और यह प्रयोग डाक्टर डेलगाडो ने मस्तिष्क के उस विशेष बिन्दु को विद्युत्धारा द्वारा उत्तेजित करके किया है । यही क्यों, उनके सांड वाले प्रयोग ने तो कमाल ही कर दिखाया था । क्रोधित सांड उनकी ओर झपटा और उन तक पहुंचने से पहले ही शांत होकर रुक गया । उन्होंने विद्युतधारा से सांड का क्रोध शांत कर दिया था ।
पर आदमी जानवर से कुछ भिन्न होता है । 'हम तभी हिंसक होते हैं, जब हम
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