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शुभाशीर्वाद प्रदान किया, इसके लिए मैं इन दोनों पूज्य चरणों में कृतज्ञता व्यक्त करते हुए उन्हें सविनय प्रणाम करता हूँ। इन सन्तों के आशीर्वाद से ही यह आलेख प्रस्तुत हो सका है। मेरे अनुज निर्मल जैन से मुझे अनेक उपयोगी सुझाव मिले हैं। प्रकाशन के लिए भारतीय ज्ञानपीठ के प्रबन्ध-न्यासी श्रीयुत भाई साहु रमेशचन्द्रजी के प्रति मैं हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ। मन कहता है यह भी लिख दूँ कि पाठकों की प्रतिक्रिया मेरा मार्ग-दर्शन करती है।
शन्ति सदन, सतना वर्णी-जयन्ती, 4-9-2001
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ग्यारह